रविवार, 8 जुलाई 2012

चिड़िया

आज एक चिड़िया अपनी चोंच में एक कतरा धूप भर कर मेरे कमरे मे डाल गई,
मुझे हिकारत से देखा और, कुछ जलते हुआ प्रश्न उछाल गई,
क्या ए.सी.मे रहने वालो को गर्मी नही लगती,
प्यास से सूखते गले मे सुइयां नही चुभतीं,
कब तक और कितने तरीकों से बचाओगे अपने अस्तित्व को,
कैसे कैसे महान बनाओगे खुद के व्यक्तित्व को,
ठण्डी हवायें कब तक रहेंगी आस पास,
कब तक ना लगेगी तुमको प्यास,
खेत,खलिहान,तालाब,पोखर,बाग,
नेह,मेह,सम्वेदना,संगीत,राग,
बना दो सब को बोनसाई, 
इसांन बना ईश्वर ये आवाज़ चिड़िया ने लगाई,
रहो अपने स्वार्थ और लालच के संसार में,
इस एक कतरा धूप को भी बेंच दो बाजार में,
जाते जाते ए.सी.का ठण्डापन, मेरी सोंचों मे भर गई,
और वो एक कतरा धूप अपनी चोंच से मेरे कमरे में धर गई...

6 टिप्‍पणियां:

  1. जाते जाते ए.सी.का ठण्डापन, मेरी सोंचों मे भर गई,
    और वो एक कतरा धूप अपनी चोंच से मेरे कमरे में धर गई...

    beautifully expressed.

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  2. कविता तो अपनी जगह बहुत अच्छी है ही..
    लेकिन जाते-जाते आपने जो कमेन्ट चिटठा चर्चा पर किया है, बस, मुझ समेत बहुतों को आईना दिखा दिया,
    आपका धन्यवाद

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  3. अदा जी ,,मेरी कोई बात आपको समझ आई ,ये सौभाग्य है मेरा ....मेरा कहना सार्थक हो गया ..बहुत धन्यवाद आपका ..

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  4. अमित जी ,आभारी हूँ रचना पसंद आने पर आपने अपनी पसंदगी से मुझे अवगत कराया

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  5. शिवांगी ,मुझे प्रसन्नता है कि तुम कविताएँ पढ़ती और पसंद करती हो ....

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