बुधवार, 31 अगस्त 2011

राम नाम सत्य है..


जीवन की आपाधापी जब विचलित करती मन मेरा,
                          तब शब्द काव्यरस छलकाते औ लेखनी देती परिचय मेरा..

 राम नाम सत्य है..




सांप रेंगते अगल बगल, पग जहाँ भी धरता हूँ,
मै भी एक इंसा हूँ, मरने से डरता हूँ,

पत्थर अच्छे है मानव से, जड़वत रहते है,
चाहे जितना दूध पिलाओ, सांप तो डसते है,
पल जाते है सांप वहीं, मै जहा भी बसता हूँ,

मै भी एक इंसा हूँ, मरने से डरता हूँ,

भ्रम कुछ भी न मेरे ह्रदय को, अभी यकीन हुआ है,
जान गया हूँ व्यर्थ है सब, अपनेपन का जो धुवां है,
चटुकारों की फ़ौज भी हँसती, जब मै हंसता हूँ,

मै भी एक इंसा हूँ, मरने से डरता हूँ,

राही सब है एक डगर पे, मंजिल सबकी एक,
भले ही खाली हाँथ हो सबके, ह्रदय भरा उद्वेग,
रिक्त नही इससे मै, फिर भी आगे बढ़ता हूँ,

मै भी एक इंसा हूँ मरने से डरता हूँ,

डर ही लगता सत्य यहाँ पर बांकी सब है झूंठा,
राजा हो या रंक, सभी के ह्रदय भरी है कुंठा,
चाहा बच जाऊं मै, पर प्रतिपल फंसता हूँ,

मै भी एक इंसा हूँ, मरने से डरता हूँ,

सत्य यहाँ पर महज दिखावा,बडबोलापन भारी,
इच्छा सब की ज़िंदा रह ले, चाहे नर हो नारी,
क्षण भंगुर मै जीवन मानूं,म्रत्यु को वरता हूँ,


मै भी एक इंसा हूँ, मरने से डरता हूँ........