सोमवार, 25 जुलाई 2011

मन...



जब मन विचलित होता मेरा मै सोचूँ गीत नया गाऊँ,
स्मृति कड़ियाँ जोड़ के फिर यादों की अंजुरी भर लाऊँ,

मै अचल रहा मन विकल रहा,
सब जीवन सम्प्रति पिघल रहा,
तब द्वार त्रिलोकीनाथ तेरे मै उम्र बढाने क्यों आऊँ,
            
          जब मन विचलित होता मेरा मै सोचूँ गीत नया गाऊँ,
           स्मृति कड़ियाँ जोड़ के फिर यादों की अंजुरी भर लाऊँ,

शर डगर भरे,अब नर है मरे,
नैतिकता जब पतित हुई  इस जीव जगत में सभी डरे,
विधि तो सोच रही शायद इस बार ही मै अब डर जाऊं,
            
          जब मन विचलित होता मेरा मै सोचूँ गीत नया गाऊँ,
          स्मृति कड़ियाँ जोड़ के फिर यादों की अंजुरी भर लाऊँ,

सुख दुःख है अगणित जीवन में,सब कष्टों का संसार है ये,
है दया क्षमा करुना नफरत,संवेदन शीतल प्यार है ये,
सबरंग रंगा भ्रमित मन मेरा कौन सा रंग लगाऊँ,
            
            जब मन विचलित होता मेरा मै सोचूँ गीत नया गाऊँ,
            स्मृति कड़ियाँ जोड़ के फिर यादों की अंजुरी भर लाऊँ,

उन्मुक्त गगन की आशा में मन पाखी अब उड़ता मेरा,
बड़ा कठिन है दुनिया में जीवन म्रत्यु का ये फेरा,
मानुष हूँ आशान्वित हूँ मै फिर से कवि  बन आऊँ,
        
          जब मन विचलित होता मेरा मै सोचूँ गीत नया गाऊँ,
          स्मृति कड़ियाँ जोड़ के फिर यादों की अंजुरी भर लाऊँ,