सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

मौन

जब आँखें बाते करती हैं तब मौन भी बोला करता है,
शोर शराबे में भी वो सन्नाटा तोला करता है,
ध्वनि की धीमी धुन को भी है चाह मौन की बहुत मगर,
निर्जन भी गूँजा करता है हो चाहे कितना मौन प्रखर,
मौन मौन रह कर के भी मिस्री सी घोला करता है,
जब आँखे बातें करती है तब मौन भी बोला करता है,
स्वर सगंम समवेत यहाँ मन्दिर में गूँजा करता है,
ओम शब्द के नाद की तो ईश्वर भी पूजा करता है,
जब आँखे बातें करती हैं तब मौन भी बोला करता है।
सत्य है केवल मौन यहाँ शब्द झूंठ की है मिसाल,
ध्वनि की ठुमरी मौन है शोर तो खाली है खयाल,
वाणी में शक्ति तो होती है पर मौन तो शोला भरता है,
जब आँखे बातें करती है तब मौन भी बोला करता है।

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

मान जाओ ना .

                                         शब्द नही है प्यार है मेरा,शब्दों का संसार है मेरा,
                                   अगणित बातें कहने को(कलम)ब्लॉग ही अब आधार है मेरा.

                               मान जाओ ना .


           प्रत्येक्य  व्यक्ति के जीवन में प्रेम और युद्ध का प्रचंड महत्त्व होता है..........मेरे साथ भी है ,
           गृहस्थ जीवन  में आनदं परमानंद के साथ कभी कभी परम दंड भी झेलना पड़ जाता है,
           दंड स्वरूप रूठने और मनाने की प्रक्रिया से तो गुजारना ही होता है,
          मै भी गुजरा , और अर्धांगिनी को मनाने के लिए कविता भी लिखनी पड़ी,किन्तु ये सत्य है
                            कविता आप के समक्ष प्रस्तुत है,



ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,
तुमको मै समझा था पत्थर पर हीरे जैसी धार हो तुम,

तुम बरखा का संगीत सनम,और पतझड़ की अमराई हो,
आकाश से ऊंची सोंच तेरी,और सागर की गहराई हो,
प्रबल भले हो शब्द मेरे पर गज़ल का सारा सार हो तुम,

ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,

तुम मधुर कंठीनी कोकिल हो,तेरा रूप सिंगार हिमाला है,
मद्सिक्त हँसी मदमस्त नयन जैसे वारुणी रस का प्याला हैं,
तुम नेह का नीर भरे उर में,ममतामई केवल प्यार हो तुम,

ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,

हो मधुर पलों की शैली तुम मेरा कणकण रोम तुम्हारा है,
खुद कंटक पथ पर सो कर के मेरी पुष्पित सेज संवारा है,
अनजान भले तुम बनी रहो पर जान मेरा संसार हो तुम,

ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,


तुम मरू में आशा किरण हुई और मदूमास का पावस हो,
बनी हो संबल एकल पथ पर और सारा बल साहस हो,
गुजर गए सब पतझड़ मेरे अब वसंत त्यौहार हो तुम,

ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

नादाँ प्रेम.

                                             शब्द नही है प्यार है मेरा,शब्दों का संसार है मेरा,
                                            अगणित बातें कहने को(कलम)ब्लॉग ही अब आधार है मेरा.

          अपने देश की गंवई भाषा में  लिखने का प्रयास किया है, मेरे एक मित्र ने इसको बैसवारी भाषा माना है ,
          मेरा भाषा ज्ञान विस्तृत नहीं है अतः मुझे उनकी बात स्वीकार करनी पड़ी....

  नादाँ प्रेम..



पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,

जब चुवै लाग यौवन हमार औ आंखी मारब जान लीन्ह,
तब अपने घर के बगल की लइकी पर हम शर संधान कीन्ह,
अब नींद न आवै रात भर सब खाब पियब दूभर होइगा,
सब जने कहै का नजर लागि,लरिका हमार दूबर होइगा,
पर असर न भा कौनो हम पर, हम जोस मा खूब ऊधान रहेन,

पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,

इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,
हमहूँ ओहिका तड़े रही वह जब फैलावे कपड़ा,
डांटे बहिनी खूब हमै कि करिहो तुम कौनौ लफडा,
काहे से वहिका बाप रहै खुब पहलवान मोटा तगड़ा,
गाँव भरे मा भाइऊ करै यदा कदा सब ते झगडा,
न सुना एकु हम कौनो की, बस आंखी मूंदे लगे रहेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,


जब ह्रदय मा हमरे प्रीत जगी,
तब बातचीत खुब होय लगी,
फिर हूक ह्रदय माँ उठे लाग,
चिट्ठी पर चिट्ठी छपे लाग,
डारा सब कांपी अपन फारि, पेन रोजु नवा हम लेत रहेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,


श्रीमन देवदास ते शुरू कीन्ह,
औ ग़ालिब का हम गुरू कीन्ह,
मजनू रांझा का लई असीस,
फिरि प्रेम पत्र हम घोर पीन्ह,
शेर शेरनी लिखै मा तब, निसिवासर हम लगे रहेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,

संग्राम इश्क का होय लाग,
बतकही करै अब लोगबाग,
पईसओ हम कीन्ह खुबई खर्चा,
सब गाँव भरे मा अब भा चर्चा,
बेशर्मी चोला ओढ़ी के हम, सब जानत भए मठियात रहेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,


अब रहै लागि वा सजी-बजी,
जब देखै हम का लजी-लजी,
तो हमका लागै  हरी सब्जी,
हम काह करी अब कोऊ कहै,
शर्महया सब दीन्ह तजी,
वह पोत पाउडर बनी भोर,हम करिया काजरू बने रहेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,


हम प्रेम ग्रन्थ हीरो बनी गेन,
बदनामी कीच महा सनी गेन,
पर छ्वारा न याकौ मंतुर की,
खा लीन्ह कसम हम जन्तुर की,
बागी हमका सब लोग कहै, तबहूँ हम सबते तने रहेन,

पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,


जब छीछालेदर भए हमार,
शिव लिंग मा दैमारा कपार,
कुछु भला करौ तुम भोले अब,
टारौ सब विपदा देव तार,
जिनगी भर बमबम भोले, नाम तुम्हारौ गनत रहेन,



पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,

अब संकट हम पर भा भारी,
तब याद कीन्ह हम महतारी,
मूड धरा हम चरनन मा सब डारि दीन्ह लोटिया थारी,
फिकर कतौ न करौ अब लालु, यो अम्मा अपने मुख ते कहेन्,



पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,

मार दीन्ह हमहूँ छक्का,
अम्मा फिर ब्याह करेन पक्का,
लगा गाँव भरे का बड़ा धक्का,
रहिगे सब हक्का बक्का, त्रिपुरारी भोले कृपा करेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,