मंगलवार, 3 नवंबर 2015

आधारशिला

आह आह...
आज कुछ अंतस में टूटा है,
खिजा ने फूलों को लूटा है,
थे मौन तो कोई बात ना थी,
आधार तेरा वादा झूठा है,
            आज कुछ अंतस में टूटा है,...
अंगारों को खुशबू दे डाली,
फूलों में अग्नि लहका दी,
शब्द पड़े थे लाशों जैसे,
पन्नो पर ऋतु पावस ला दी,
अब ग्रंन्थो से ग्रन्थी छूटा है,
             आज कुछ अंतस में टूटा है,...
बौने सारे शब्द हो गये,
भाषा के स्वर मौन हो गये,
कुनबा सारा जोड़ लिया था,
अनायास तुम कौन हो गये,
हृदय अश्रु झरना फूटा है,
              आज कुछ अंतस में टूटा है,....

                पूज्य राजीव चतुर्वेदी भैया जी को समर्पित अश्रुपूरित शब्दांजलि......

सोमवार, 2 नवंबर 2015

भागीरथी महिमा


नीचे बहै वारि तापे कच्छप सवार है,
कच्छप की पीठ.पै सवार शेषकारा है
शेष पै सवार अवनि भार स्यों दबाय रह्यो,
अवनि पै सवार शुंभ पर्वत विस्तारा है,
शुंभ पै सवार शंभु,शंभु पै सवार जटा,
जटा पै सवार भागीरथी जी की धारा है।

सोमवार, 28 सितंबर 2015

"गुत्थी" मनहरण घनाक्षरी

देस केरि दसा देखि,जिउ जरा जात है,
लोकतंत्री मुलुक मा यो विस्वासघात है,
मइकूराम भूखन मरे जरे कण्डा बारि के,
कइसे बनै रोटी आटा कच्चै चबात हैं,
पातिउ बीनै नाई देत खेत तार बाँधे हैं,
ईसुर धूरि धूरि मइहा सब जने बतात हैं,
ओट ओटि लेत हैं पाछे कोउ देखत नाई,
गुत्थी के जीवन मा या अन्धेरी रात है,
राति होय पूस केरि जेठ कै बयार होय,
नाजु भरै उनके घर हमार खाली हाँथ है,
नीर नाइ आँखिन बुढ़उ परे खाँसि रहे,
महतारी छूछी टाठी रोजु खटपटात है,
नून आटा सानि सानि बच्चा जियाए है,
पानी पियै बार बार भूखन छटपटात है,
ठाकुर कहेन रहै यादि आवै बार बार,
तुम्हार दुख: मेटि देब या हमार बात है,
नाजु ले साजु तुम आजु रात चली आएव,
आधी रात ढोर तना दउरी चली जात है,
सूखी परी आँखी गुत्थी मरी आज रात,
जियै खातिन यहै अब रस्ता देखात है,

सोमवार, 14 सितंबर 2015

राज़..

सुबह गुज़री उम्र बीती साँझ भरमाने लगी है,
पलक भी बोझिल हुई नींद अब आने लगी है,

हूँ गगन से दूर फिर भी रात आँखो मे बसी है,
मस्त सावन की हवा भी लोरियाँ गाने लगी है,

पलक मूँदू जैसे ही मैं ख्वाब में वो हमनशीं है,
चाँदनी की चमक से मदहोशियाँ छाने लगी हैं,

तितलियों का रंग देखा उनके मुखड़े पर हँसी है
हर कली भी शाख पे मदमस्त लहराने लगी है,

किंतु सब कुछ छोड़ कर वासना की चाहना में,
रिक्त सी हर शै ज़मी की घर युँ ही जाने लगी है,

सुरभि संदल की उड़ी औ मंत्र उच्चारण हुआ है,
मुक्ति की उम्मीद में हर लाश अँगड़ाने लगी है,

कह रह हूँ "राज" सबसे अब सुनो या ना सुनो,
गीत अंतिम है ये मेरा मृत्यु अब भाने लगी है,
                             
सुबह गुज़री उम्र बीती साँझ भरमाने लगी है,
पलक भी बोझिल हुई नींद अब आने लगी है,
  
                                    राजेन्द्र अवस्थी....

रविवार, 6 सितंबर 2015

मुक्तक जैसा कुछ..

किस से सीखू मैं खुदा की बंदगी,
सब लोग खुदा के बँटवारे किए बैठे है,
जो लोग कहते है खुदा कण कण में है,
वही मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे लिए बैठे हैं !

मेरे हौसले को देख मेरे जज़्बात को ना देख,
मेरी बादशाही देख मेरे हालात को ना देख,
तपा कर रूह को अपनी ये इश्क ए जाम पाया है,
मेरे हिस्से में रंज ओ ग़म यही ईनाम आया है,
रही है बस यही दौलत मेरे दिल के खजाने में,
के तेरे ही नाम के पीछे मेरा भी नाम आया है,

गांव छोड़ के शहर आया था,

फिक्र वहां भी थी फिक्र यहां भी है।

वहां तो सिर्फ 'फसलें' ही खतरे में थीं

यहां तो पूरी 'नस्लें' ही खतरे में है

दिल पे लिखने का हुनर मुझको बता देते,
आप सिखाते मैं न समझता तो सज़ा देते,
हर जगह आज़माया है हाँथ मेरे बुजुर्गों ने,
काश़ मेरे लिखने के लिये कुछ तो बचा देते।

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

ट्रेड यूनियन का नेता

बेमतलब की बात है ये वो गुण्डा है या नेता है,
आपतो मतलब इससे रक्खो तुमसे वो क्या लेता है,

बचा नही पाओगे कुछ भी झोंकेगा आँखो में धूल,
लूटेगा सपनो को या फिर सपनो का विक्रेता है,

अपना सपना पूरा करता झूठ दंभ पाखण्ड सहित,
कुर्सी उसकी बची हुई है क्यो की वो अभिनेता है,

खुद के सुख की खातिर ये तो शातिर चाले चलता है,
सुख की इच्छा मत कर बंदे ये तो दुख ही देता है,

दारू गोश्त है अमृत इनका पानी नही ये पीते हैं,
कर्णधार तुम समझो इनको यही आज के नेता हैं,

शनिवार, 22 अगस्त 2015

हौसला

मेरे हौसले को देख मेरे जज़्बात को ना देख,
मेरी बादशाही देख मेरे हालात को ना देख,
तपा कर रूह को अपनी ये इश्क ए जाम पाया है,
मेरे हिस्से में तेरा ग़म तेरा ही नाम आया है,
रही है बस यही दौलत मेरे दिल के खजाने में,
के तेरे ही नाम के पीछे मेरा भी नाम आया है,
            राजेन्द्र अवस्थी....

शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

सावन आया..

करुँगा तुमको जी भर प्यार,
पहले दिल की बात बता दो,
रूठो ना हमसे हर बार,
प्यार का पारावार बता दो,
करुँगा तुमको जी भर....पहले दिल की बात....
बात तुम्हारी गुड़ियों वाली,
छलक रही यौवन की लाली,
आखिर कब तक करोगी,
हमसे हँसीं ठिठोली रार बता दो,
करुँगा तुमको जी भर....पहले दिल की बात....
पहरों में रहती हो ऐसे,
पलक में कोई ख्वाब हो जैसे,
देखूँ छुप छुप मिलन हो कैसे,
फिर से अगली बार बता दो,
करुँगा तुमको जी भर....पहले दिल की बात...
सावन आया पड़ गये झूले,
हम तुम मिल कर गगन को छूलें,
भोली सूरत वाली आकर,
प्यार का मुझको सार बता दो,
करुँगा तुमको जी भर.....पहले दिल की बात....

                                           राजेन्द्र अवस्थी..

रविवार, 19 जुलाई 2015

धोखा..मन की बात-4

बड़ा अफसोस होता है जब कोई मित्रता की आड़ में धोखा देता है। लेकिन ये तो कड़वा सच है कि धोखा तो वही देता है जो जान वाला होता है, हाँ इस धोखे की प्रबलता और बढ़ जाती है जब कोई स्त्री धोखा देती है क्यों कि स्त्री हमारी मानसिकता में सिरे से कमजोर,मूर्ख,और दयालु होती है इसलिये उसके द्वारा खाया हुआ धोखा आसानी से हजम नही होता..दरअसल हम आज भी मनुष्य को सभ्य नही कह सकते क्यों कि "सभ्य" शब्द कहने के लिये "सभ्य" शब्द की परिभाषा भी मालुम होनी चाहिये या कम से कम इतनी संतुष्टि तो स्वयं को होनी ही चाहिये कि "सभ्य" शब्द की आड़ मे कोई धोखा नही दिया जा रहा। लेकिन समस्या यहीं से शुरू होती है जब भी किसी पर या कहीं पर भरोसा करने की बात आती है तो वहाँ पर धोखा और झूठ भी होने की पूरी सम्भावना होती है बस अंतर ये होता है कि हम भरोसा कर लेते हैं विश्वास कर लेते हैं गैर पर अजनबी पर फिर उस गैर को अथवा अजनबी को अपना बनाते हैं उसके बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं. फिर उस पर भरोसा करते हैं क्यों कि भरोसा किसी गैर पर या अजनबी पर तो किया नही जाता और फिर जैसे ही भरोसा कायम होता है धोखा मिलने की शुरुआत हो जाती है अब देखना ये होता है कि धोखा कितने अर्से बाद मिलता है ऐसा भी नही कि हर बार विश्वास के बदले धोखा मिले ही किंतु ऐसा बहुत ही कम देखने में आता है हाँ ये अवश्य पुख्ता तौर पर कहा जा सकता है कि पति-पत्नी का सम्बन्ध पूर्णरूपेण विश्वास पर आधारित होता है, इसका अर्थ ये नही कि अन्य रिश्तों पर  यकीन ना किया जाय। ऐसा नही है.. विश्वास करना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है इसे ऐसे समझ सकते हैं, मछली जल पर विश्वास करती है प्रत्येक प्राणी प्राणवायु पर विश्वास करता है ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं। अंतर इस बात से पड़ता है कि विश्वास करने से पूर्व आपने कितनी जानकारी जुटाई फिर भी इस बात की कोई गारण्टी नहीं है कि भरोसे के बदले धोखा नहीं मिलेगा...दरआस सिक्के के ये दो पहलू हैं। विश्वास-धोखा किसी के हिस्से में प्यास आई किसी के हिस्से में जाम आया ।

निष्ठुर

राहों में अब मत बैठो तुम,
प्रेम का आंचल फैला कर,
निष्ठुर बन वो मुंह फेरेगा,
चल देगा तुमे ठुकरा कर,
खून भले तेरा है उसमें,
दर्द दिये फिर भी छल कर,
तुम दर्द लपेटे आँचल में,
जीती हो जल जल कर,
सींचा अपने प्राणामृत से,
बड़ा हुआ है अब पल कर,
वही लुकाठी पकड़ के लाया,
तुझे छोड़ने घर बाहर,
पाषाण ह्रदय वो बन बैठा,
पाला जिसको मर मर कर,
खैर उसी की माँग रही तू,
ह्रदय पे फिर पत्थर धर कर।

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

सूंचना-बैसवारी

लखनऊ मेट्रो शुरू करने की योजना पर काम चल रहा है। ठेठ बैसवारी में एनाउंसमेंट कुछ इस प्रकार होंगें:

** भईया हाथ जोड़ि कै बिनती है कि दरवाजन ते हटि कै ठाड़ होएओ, नहीं तौ कूचे जइहौ।

** पीली लाइन के पिछेहे ठाड़ रहेओ।

** गाड़ी केर पहिलै डिब्बा मेहेरियन खातिर है, ओके भीतर जउन चढ़ी ओका कायदे मां हउंका जाई और जुर्मानौ कीन जाई।

** दरवज्जा दाईं तरफ़ खुलत है। ओके ऊपर हाथ धरि कै न ठाड़ होएओ सरऊ।

** गाड़ी मां मसाला, चाय, बीड़ी, पान सब बर्जित हैं। कउनौ यो सब खात मिला तो वहिका पेल दीन जाई।

** आगे आवै वाला सटेसन आलमबाग है, हिंयाँ ते उत्तर प्रदेश बस सेवा के सिटी सटेसन खातिर उतर लीन्हेओ और सरऊ कायदे मां उतरेओ नाहीं तौ आगे बड़े-बड़े गड़हा  हैं, घुसमुड़ा जहिऔ ओहमां।

** बुजुर्ग चच्चा लोगन और मेहेरियन खातिर चुप्पे ते जगह दई दीन्हेओ वरना लपेटे मां आ जहियओ।

** गाड़ी मां च्वारन ते सावधान रहेओ। ससुर बहुत बढ़िगे हैं।

बुधवार, 8 जुलाई 2015

प्रभात फेरी..

ले लो मेरा सब कुछ मेरे लिये सब बेकार है,
गुर्दा दे दो लोकतंत्र को उसी को दरकार है,
आँख मेरी तुम लगा दो बेशर्म कानून को,
भारत की माटी में मिलाना मेरे सारे खून को,
मिट चुकी है विश्व में जो शान हिंदुस्तान की,
वापस लाना है उसे कीमत हो चाहे जान की,
बेहोश करने की कोई ना जरूरत है मुझे,
देश के दुश्मन से बे-इंतहा नफरत है मुझे,
इसलिये तुम खींच लेना धमनियाँ सारी मेरी,
राखी का धागा बनाना बहन जो लुट कर मरी,
रोक देना साँस मेरी तुम कफन से मूँद कर,
आबोहवा निर्मल बनाना हर गली में ढूँढ़ कर,
राह के गड्ढों में भरना राख तुम मेरी चिता की,
संवेदना जीवंत रखना इस तरह मेरे पिता की,
ठोकर ना लग पाये उन्हे राह में चलते समय,
लड़खड़ायें  जब भी वो तो हाँथ में मेरे थमें,
जोड़ कर डण्डा बनाना हड्डियों को मेरी तुम,
फिर तिरंगे संग लगाना प्रभातियों की फेरी तुम,
इस तरह शायद उरिण हो जाऊँ माँ के कर्ज से,
माँ भारती के पुत्र का नाता निभा दूँ फर्ज से।

मंगलवार, 7 जुलाई 2015

सुरक्षा-हास्य-व्यंग

इंसान का टेस्ट भी अजीब है.......अधिकांश पुरुषों का दिन अखार से शुरू हो कर टी.वी.न्यूज़ पर समाप्त हो जाता है।
गाँवों में भी खबरची होता था जो एक समाचार पत्र खरीद कर अन्य लोगों को खबरें पढ़ कर सुनाया करता था।
खबरें सुना कर भी लोग अपना मनोरंजन किया करते थे।
समय के साथ इस शगल का लुत्फ लेने वालों की संख्या में इजाफा हुआ......और जैसे ही दहेज में ट्रांजिस्टर मिलने लगे....लोगों का रुझान अखबार की खबरों में समाप्त होने लगा....
अब तो गाँव की चौपाल पर ट्रांजिस्टर को घेर कर समाचार सुनते लोग। किंतु शहरों में समाचार पत्र रोज सवेरे लोग नाश्ते में लेते रहे....अखबार भी खबरो को चटपटी,रसीली,सनसनाती हुई..दिल दहलाने वाली बता कर खूब पैसा बटोरने लगे....
एक समय था जब लोगों को कन्या भ्रूण हत्या के बारे में अखबारों से पता चला कि, शहरों में विदेशी मशीने लगी है जो जन्म लेने से पहले ही ये बता देती हैं कि...पैदा होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की...फिर क्या था इस चमत्कार को नमस्कार करने अधिकांश नवविवाहित जोड़े पहुंचने लगे पैथॉलोजी वालों ने खूब रकम काटी और फिर सरकार ने इस लिंग परिक्षण को  अपराध घोषित कर दिया ...इस खबर से अखबार वालों का तो कोई लाभ नही हुआ किंतु लिंग परिक्षण करने वालों ने चोरी से ये परिक्षण करना जारी रक्खा और चाँदी काटते रहे।
अचानक टेस्ट बदला...और दहेज हत्या .....मुख्य खबरों में शुमार होने लगी....फिर तो देश भर में दहेज हत्याओं की बाढ़ सी आ गई.दहेज हत्या.........और प्रेम हत्या की खबरों ने फिर से लोगों को चर्चियाने का अवसर प्रदान कर दिया.....हंलाकि, बीच बीच में अन्य खबरे भी खदबदाती रहीं...जैसे कि....चुनाव चकल्लस,किरकिटिया कमेंट्री,बाँकी सीजनल समाचार जैसे....होली,दिवाली,दशहरा,क्रिसमश के बारे में लोग पूरे वर्ष भर चाय के साथ मजे लेते रहे...अब देखने वाली बात ये है कि, सूंचना माध्ममों की पहली पसंद और खबरों के केंद्र में कौन रहा?  जी हाँ....
                         "स्त्री"
मतलब बिन स्त्री सब सून....
इस महान देश भारत में सदियों से स्त्रियों का शोषण होता आया है....कभी घूंघट की आड़ में कभी मान मनुहार लाड़ में....हमारे एक बहू बेटे वाले मित्र नें हमसे पूंछा......ताला किसके लिये होता है?  मैने कहा सज्जनों के लिये। वो मेरी बात से सहमत हुए...
फिर हमने पूंछा...घूंघट किसके लिये?  क्यों कि, हमारे विद्वान मित्र की बहू घूंघट करती है और वो इसके पक्षधर भी थे........
वो बोले सम्मान के लिये...और अपनी सुरक्षा के लिये....हमने पूंछा...सम्मान किसका और सुरक्षा किससे?किसकी?
मित्र कहने लगे...बड़ों का सम्मान और स्वयं की सुरक्षा.......अपने से बुज़ुर्ग और विद्वान मित्र का इतना सारगर्भित तर्क सुन कर मैंने कहा.......
अरे भाई, आपका ये सुझाव यदि देश के सैनिको तक पहुंचा दिया जाय तो  उनका कल्याण हो जाए......सारे सैनिक घूंघट करके जंग जीतते और सम्मान के साथ साथ सुरक्षा भी प्राप्त कर लेते....इतना सुनते ही मित्र का पारा हाई हो गया.....बोले-  तुम कहीं की बात को कहीं से जोड़ देते हो...
मैने कहा, ज़रा ये भी स्पष्ट कर दें कि, घूंघट करने से सुरक्षा कैसे सम्भव है? बिना उत्तर दिये वो तमतमाते हुए चले गये.....
मित्रों मैं उत्तर की प्रतिक्षा में हूँ.....

विस्मय..

विस्मय क्यूँ कर हुआ तुम्हे ये बात हमें तुम बतलाओ,
दीवारें हिलती पर्दों सी देख जरा ना घबराओ,

स्वर्णिम बादल सूरज घेरे किरणें कैदी हो जातीं,
परेशान सा जलता दीपक औ रोगी रोती बाती,
रुग्ण मनस हो चला हो जैसे अंधकार का प्रेत,
मुर्दों की फसलें बह जाती खाली रहता खेत,
चकित क्यूं होता चित्त चरित कुछ तो इसको समझाओ,

विस्मय क्यूँ कर हुआ तुम्हे ये बात हमें तुम बतलाओ

खड़े हुए सब उसी जगह पर जहाँ से कल भागे थे,
शवों की हड्डी पकड़ के कहते हम तो कल आगे थे,
नित नित धूप जलाती चाँदनी चंदा संग ढलती है,
शहर नही है मरा हुआ यहाँ लाशे तक चलती हैं,
कौतुक मत जानो इसको ना जरा कहीं तुम भरमाओ,

विस्मय क्यूँ कर हुआ तुम्हे ये बात हमें तुम बतलाओ,

कितना सारा नियम बना औ तर्क-वितर्क बहुतेरे,
शब्द लब्ध भी हुए तो क्या मर्कट तो दुनियां घेरे,
काश जो होता मैं उस पल जीवन गीत सुना देता,
सूने से शहरों में साथी प्रीत की रीत चला देता,
भौचक हो क्या देख रहे इक बार मुझे भी अजमाओ,

विस्मय क्यूँ कर हुआ तुम्हे ये बात हमें तुम बतलाओ

सोमवार, 6 जुलाई 2015

फूल जो मिला किताब में.

खो गया था जो कभी कहीं,
फूल वो मिला किताब में,

खेलती थी साथ जो मेरे,
छुपती है वो अब हिजाब में,
मिलती है जो अब अगर कहीं ,
सवाल रहता हर जवाब में,

खो गया था जो कभी कहीं,
फूल वो मिला किताब में,

मुब्तिला है दिल बहुत मेरा,
महबूब के इश्क ए अजाब में,
आज सोचता हूँ बैठ कर,
क्या कमी हुई हिसाब में,

खो गया था जो कभी कहीं,
फूल वो मिला किताब में,

पता नहीं अभी तलक चला,
क्या मिला इश्क ए खिताब में,
पूँछता हूँ हाले ए दिल अगर,
कहा दिल नही बचा जनाब में,

खो गया था जो कभी कहीं,
फूल वो मिला किताब में,

रविवार, 5 जुलाई 2015

नेता

नेता जी मुस्कराये,
सबने देखा,
होंठो में खिची महीन रेखा,
चेहरा अजीब दिख रहा था,
उनका पुत्र ये सब सिख रहा था,
आखिर आने वाले कल का नेता है,
पिता पुत्र को विरासत देता है,
कुटिल मुस्कान,
छीना हुआ सम्मान,
साजिशों का बस्ता,
संस्कार सस्ता,
पुत्र भी मुस्करायेगा,
जब नेता बन जायेगा,

रविवार, 28 जून 2015

पगली

युग बदले पर तुम ना बदलीं,
हम भी पागल तुम भी पगलीं,

पायल धुन है वही पुरानी,
प्रेम रीत भी है अनजानी,
मन तो मेरा पिघल चुका है,
लेकिन तुम अब तक ना पिघलीं,
हम भी पागल तुम भी पगली,

सावन तो आता जाता है,
पपिहा पंचम सुर गाता है,
फिर भी ना जाने क्यूँ हमको,
ऋतुएं लगती नकली,
हम भी पागल तुम भी पगली,

बरखा कैसे जलन मिटाए,
बूँद बूँद तन मन सुलगाये,
बैरन बन गई जान हमारी,
अब निकली  तब निकली,
हम भी पागल तुम भी पगली।

शुक्रवार, 26 जून 2015

रिश्ता रिसता है

आओ चलो मर चुके रिश्तों को दफना दें,

साथ साथ साथ था,
रात मधुर बावरी सी,
महकता सा गात था,
आज हम विलम्ब से,
विदाई गीत गुनगुना दें,
आओ चलो मर चुके........

भावना भी सुप्त हुईं,
बातें खूब गुप्त हुईं,
चुगलियाँ भी मुफ्त हुईं,
हाँथ अब वो छोड़ चले,
किसे हम उलाहना दें,
आओ चलो मर चुके......

नेह डोर टूट गई,
बचपन की यादें भी,
दूर कहीं छूट गईं,
वो तो हमें भूल चुके,
हम भी उन्हे बिसरा दें,
आओ चलो मर चुके......

गुरुवार, 25 जून 2015

रीता बचपन

खेल खिलौने पढ़ना लिखना,
हँसना तक वो छोड़ चुका है,
सुबह से लेकर रात तलक,
बस काम से नाता जोड़ चुका है,

अब गाई चराई रमपलवा,
बापु सिधारेस स्वर्गलोक,
औ घरु मा माई करै सोकु,
पेटु का खाली भा गढ़वा,
अब गाई चराई रमपलवा,
है उमिर बरस बारा कै बसि,
नेकर ढीली लीन्हेस कसि,
नंगे पाँव जरैं तरवा,
अब गाई चराई रमपलवा,
गोरू ख्यातन मा घुसे जात,
लाठी लीन्हे नान्ह हाँथ,
लखेदि लिहिस भुरउ पड़वा,
अब गाई चराई रमपलवा,
जेठु घाम औ मुख मलिन,
दउरि रहा है गाँव गलिन,
स्वाचन मा खाय़ रहा हेलुवा,
अब गाई चराई रमपलवा।

रविवार, 21 जून 2015

21 जून प्रथम विश्व योग दिवस

रेंगते हुए लोग,
ऊँची ऊँची फैकते लोग,
घिसटते हुए लोग,
चपटते हुए लोग,
इधर उधर भागते लोग,
फुटपाथ पर जागते लोग,
थमते हुए लोग,
जमते हुए लोग,
सड़कों पर चलते लोग,
लोगों को खलते लोग,
ये भी है एक प्रकार का योग,

नियत मुद्रा में हो स्थित,
ध्यानावस्था में अवस्थित

पीठ सीधी दृष्टि सामने,

संतुलित गति दूरी मापने,

मद्धिम श्वांस तीखी नज़र,

योग व्यस्त सारा शहर,

एकाग्रता यदि भंग होती,

चेतना फिर व्यग्र होती,

इंद्रियों पर कर नियंत्रण,

साधना का ले निमन्त्रण,

यात्रा रहती है जारी,

राह थकती है ना हारी,

आज वो है कल ये होगा,

राह मे होता है योगा,

बोलते चलते सभी,

पर मानते ना हैं कभी,

के तप सभी मिल कर हैं करते,

पर सभी मिलने से डरते,

राह से नव राह मिलती,

राह चढ़ती औ उतरती,

राह है पल पल बदलती,

मंज़िले ना रोज़ मिलतीं,

योग से जब योग जोड़ा,

कर लो सब मिल योग थोड़ा

शनिवार, 20 जून 2015

अस्तित्व

तुमको पास ना देख दूरी का अहसास हुआ, भले ही ह्रदय मे रुधिर की तरह उपस्थित हो, पर श्वेत कणिकाएँ कुछ कम हो चली हैं, यादों का सिलसिला श्वांस की तरह हो गया है, हाँ जब बिजली नहीं आती,तब तुम्हारे पास ना होने का अहसास दम घोटता हुआ सा लगता है, अधेरे मे तुम नज़र आने लगती हो कल्पनाओं मे, और मै ढ़ेर सारी बातें कर जाता हूँ तुमसे, वास्तव मे मुझे पता होता है कि तुम नही हो, अंधेरा कर गई रोशनी की तरह, लेकिन तुम्हारी अंधेरे की सौगात मुझे पसंद है, मुझे पता है ये भी कि जब तुम आओगी, तो रोशनी आयेगी मेरे कमरे में, जब तुम आओगी तो ज़मीन आवाज़ देगी, तुम्हारे आने की, जब तुम आओगी तो चंदन की महक भी आयेगी तुम्हारे साथ, जब तुम आओगी तो मेरा अस्तित्व भी अस्तित्व मे आयेगा, अरे..अस्तित्व हीन जीवन!!!!!!!!! क्या गज़ब का परिहास है, चलो कुछ तो है परिहास ही सही, पर है तो सही जीवन बिना अस्तित्व के भी, क्यों कि,मेरा अस्तित्व तो तुम्ही हो, क्यों कि, मेरा अस्तित्व तो तुम्ही हो..

शनिवार, 2 मई 2015

दिल की बात - 3..

कुछ सत्य - कडवे सच

1. भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जो अपने देश में बैठे गद्दारों पर कोई कार्यवाही नहीं करता....

2. भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है. जहाँ अल्पसंख्यक समुदाय बहुसंख्यक समुदाय पर अत्याचार करता है....

3. भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है. जिसमें सरहद पर तैनात सिपाही को एकसाल तक छुट्टी नहीं मिलती. लेकिन जेल में बंद संजय दत्त को हर 2 महीने पैरोल पर छुट्टी मिल जाती है.....

4. भारत दुनिया का ऐसा देश है, जहाँ लाखों अरबो का घोटाला करने वाले आजाद घूमते है. लेकिन जिस पर आरोप साबित नहीं हुआ है कैंसर पीडित साध्वी को जेल मे रखते हैं।

5. भारत ऐसा देश है, जहाँ आतंकवादियों और बलात्कारियों के मानवाधिकारो के लिए लड़ने वाले मिल जाते है. लेकिन आतंकवादियों के हमलों में मरने वालों के लिए कोई मानवाधिकार की बात नहीं करता..... 

6. भारत ऐसा देश है जहां हिरन का शिकार करने पर कडी सजा का प्रावधान है लेकिन गौमाता जिसे हिन्दू मां मानते है की हत्या पर सब्सिडी दी जाती है 

7. भारत के सेकुलर नेता ऐसे है, जो आतंकवादियों को सम्मान देते है और राष्ट्रवादीयों को गालियां देते है....

. 8. भारत दुनिया का ऐसा देश है, जहाँ बाहरी घुसपैठियों का घर बैठे राशन कार्ड और वोटर कार्ड बन जाते है. लेकिन इन सब के लिए चक्कर काटते काटते देश के आम नागरिक की चप्पल घिस जाती है......

9. भारत दुनिया का ऐसा देश है जहां पांचवी पास आदमी एक स्कूल का चपरासी तो नही बन सकता लेकिन नेता बन सकता है ।

10. भारत दुनिया का ऐसा देश है जहां के इतिहास मे भगतसिंह को आतंकवादी और भारत पर हमला करने वाले  अकबर और सिकन्दर को महान बताया गया है।

11. भारत दुनिया का ऐसा देश है जहां 80% अंक पाने वाला बेरोजगार घूम सकता है और 40% से भी कम अंक पाने वाला आरक्षण के माध्यम से डाक्टर या जज बन सकता है...

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

किसान

बखत अइस भारत मा आवा किसान मरे जात हैं,
भीखियार होइगे नेता उई पिसान धरे जात है,
चकरबक्क होति खूब चउका औ चौपालन तक,
या चीखि औ पुकार सुनि लरिका डरे जात हैं,
जी आपन जी का मारि मारि देस का जियाएन है,
उई देस के किसान सब अध मरे हून जात हैं,
खेत खाली पेट खाली समुहे धरी छूँछी थाली,
गाँव छाँड़ि ज्वान सहरु नौकरी करै जात हैं,
गाँव मां रहै बाघु अस बोकरी सहरु कइ दीन्हेस,
तनखा मिली आखिरी मा भूखे पेट परै जात हैं,
महतारी सब जानि रही अजानि बनी रहति है,
दिल्ली मा हमार लरिका पेड़ ते मरै जात हैं।

रविवार, 5 अप्रैल 2015

स्वाभिमान

मौन हूँ  मैं तो यूँ समझो के बेदी अभी सजाई है,
घृत कपूर औ आमृ काष्ठ से ज्वाला बस सुलगाई है,
लोकतंत्र का हवन हमारा प्रारम्भिक चरणों में है,
सच पूँछो इतिहास सृष्टि का मेरे आचरणो मे है,
बिन देखे औ बिन जाने तुम क्या पहचान बताओगे,
हत्या को कुर्बानी कह कर कब तक लाज बचाओगे,
हम तो समझाते आये हैं तुमको सब संदर्भों में,
फिर भी आँखे मूँद रहे तुम झूठ दिखावा दर्पों में,
बने रहो नादान युँही कुर्बानी दे दो अपनी भी,
बचा नहीं ना कोई बचेगा महन्त मॉरिस मदनी भी,
अपनी बख्शी चाह रहे सल्लाहो अलैह वसल्लम से,
तुमने कब किसको बख्श़ा है अपने खूनी बल्लम से,
अभी गनीमत बाँकी है तुम बच्चों को भी मार चुके,
कॉप उठेगी कायनात यदि हम धीरज को त्याग चुके,

रचनाकार- राजेन्द्र अवस्थी.......

रविवार, 29 मार्च 2015

लाइक-कमेण्ट

वय का प्रभाव जैसे जैसे मनुष्य पर होता है उसके प्रति मोह भी घटता जाता है..
जैसी पीड़ा और दुख: छोटे बच्चे की निधन पर होती है वैसी ही पीड़ा और दुख: अस्सी या नब्बे वर्ष के मनुष्य के निधन पर नहीं होती. बल्कि मैने तो कई बार लोगो को आपस में ये भी कहते सुना है कि अच्छा हुआ ज्यादा किसी से सेवा नहीं करवाई.. हँसते खेलते चली गईं..
आभास करें तो सच में अस्सी वर्ष के वृद्ध के निधन पर बहुत कम ही लोग मिलेंगे जो शोक व्यक्त करेंगे... कई लोग तो शोक व्यक्त करने से पहले पता लगा लेते हैं कि मरने वाले की उम्र क्या थी.... मालूम होने पर कि 80 साल की थीं तो कहते हैं चलो अच्छा हुआ घिसटना नहीं पड़ा..
और यहाँ फेसबुक पर ठीक उल्टा देखा मैंने.... लोगों को मालूम रहता है कि बहुत बूढ़ी थीं . आज कल आज कल लगा हुआ था, जमीन पर लिटा दी गई थीं....
बंदा खुश हो रहा है चलो एक और पोस्ट मिली. जल्दी से दादी के साथ सेल्फी ले कर पोस्ट कर दिया कि हमारी दादी की तबियत बहुत खराब है.. बस फिर क्या श्रद्धालुओं के लाइक और कमेन्ट धड़ाधड़ चिपकने लगे.. भगवान दादी को जल्दी स्वस्थ करें, ईश्वर सब अच्छा करेगे,धैर्य धारण कीजिये..
अब कोई पूछे कि धैर्य होता तो दादी के स्वास्थ की फिक्र करते ,टेंशन तो लाइक और कमेन्ट की हो रही है..जहाँ पोस्ट पुरानी होने लगी फौरन खुद एक कमेन्ट मार दिया..आज दादी ने आँखे खोली.. पोस्ट फिर से नया हो गया.. फिर लाइक कमेन्ट की रेलमपेल शुरू.. पोस्ट देखते देखते देखा कि दादी तो सच में आँखे खोले हुए हैं.. खुशी से चहकते हुए फौरन दादी को बता दिया....दादी आपकी  तबियत खराब सुन के डेढ़सौ लोगों ने कमेन्ट किया और तीन सौ लोगों ने लाइक मारा.. दादी ने आँखे बंद कर ली हमेशा के लिये....ये देखते ही बंदा उछल पड़ा आधी खुशी आधे गम का एपीसोड प्रत्यक्ष हो गया...जल्दी से पोस्ट बनाई.. मित्रों अभी अभी 9.55 पर मेरी दादी माँ का स्वर्गवास हो गया..
फिर से लोगों के लाइक और कमेन्ट आने लगे.....भगवान इस दुख: की घड़ी में आपको साहस दे और दादी की आत्मा को शांति दे, ईश्वर इस कठिन दुख: की घड़ी में आपको शक्ति दे(दादी से सम्बंधित अपडेट करने की) एक कमेन्ट में पढ़ा बंदे ने लिखा था, ईश्वर पर भरोसा रखें  (किस बात का ये नही लिखा) लोग भी जल्दी में होते हैं ,कभी कभी अधूरा ही कमेन्ट टीप देते हैं.... घर में माहौल शोकपूर्ण है और ये अपनी पोस्ट देख कर खुश होते रहते हैं....

शुक्रवार, 20 मार्च 2015

जाल..

नहीं झुरझुरी हुई थी मुझको मौसम जब था सर्द यहां
परस्त्री आकर्षण का कुत्सित खेल है कुछ मस्तिष्कों का
जो, हमदर्दी का रूपक गढ़ते, चरित्रहीन कमजर्फों का.
काँप गया था देख के पर कुछ अभिलाषी नामर्द यहाँ.
नहीं झुरझरी..
शब्द अलंकृत गहराते हैं बद्धितलिपि हो, छंदों में
परिचय पलपल बढ़ता जाता,निश्चय के सब फंदों में
इनकी तो पहचान सरल है रहती सूरत जर्द यहाँ
नहीं झुरझरी..
काम लपेटे मन के भीतर मिश्री सी रखते ये बोली
बसे हुए नैनों, स्वप्नों में, अंगिया, सुंदरि, सुंदरि चोली.
ऐसी सभी कुसंस्कृत शै को करना है बेपर्द यहाँ.
नहीं झुरझुरी...

मंगलवार, 17 मार्च 2015

आज का जीना..

वो डरता है अपनी बड़ी होती बच्ची को देख कर..
या यूँ कहें कि वो डरता है औरत देख कर,
अकेला छोड़ कर जब भी वो बाहर जाता हैं,
साथ ले कर जाता हैं सिर्फ डर,
घर में रह जाती है अकेली,
बच्चियों के साथ,
कलमा पढ़ती आरज़ू,
उसके घर से निकलते ही,
जां नमाज़ बिछ जाती है,
बच्चियाँ भी बैठ जाती हैं पास में,
आँगन में कोई चिडिया भी,
सरगोश़ी करती है,
तो उसे ताला बंद मिलता है दरवाजे पर,
कोई झरोखा नहीं,
जिससे आरज़ू को रोशनी दिख जाये,
बच्चियों को भी रोशनी चाहिये,
बच्चियाँ चुपचाप देखती रहती हैं,
कलमा पढ़ती अम्मी को,
कोई शरारती सिपाही,
ताले को हिला देता है,
जोर से,
कि शायद कोई चीख़,
सुनाई दे जाये उसे,
कमरे में बच्चियों का मुँह,
गोद में छुपा लेती है आरज़ू,
मेरे मौला मेरे मालिक,
आवाज़ सुनती हैं बच्चियाँ,
सीख जाती हैं बच्चियाँ,
अपना सिर ढापना,
खाना बनाना,
बर्तन धोना,
चुपचाप अँधेरे कमरे में रहना,
और इंतज़ार करना अब्बा का,
ताला खुलने की आवाज़,
धड़कन रोक देती है,
साँस भूल जाती है भूँख भी,
जल्दी से अंदर आ कर,
अब्बास खुश हो लेता है,
आज के लिये जीना हो गया।

बुधवार, 11 मार्च 2015

रंगीलो म्हारो कानपुर..

कानपुर का आलम देखो बरस रही है मस्ती,
सभी दिवाने हुए खड़े है चाहे जो हो हस्ती,
रंगरलियों की बात करें क्या हवा हुई रंगीन,
हुल्लड़ धूम तमाशा हो चाहे आग लगी हो बस्ती।

मनु होय त कम्पू घूमि जाओ,
भीड़ भड़क्का रेलम पेला,
मोटर टम्पू खड़खड़ ठेला,
चाट पकउड़ी सेब औ केला,
चम्प चमेली केतकी बेला,
भगवत भूमि का चूमि जाओ,
मनु होय त कम्पू घूमि जाओ,

खुरपी फरुहा काँटा कीला,
लाल गुलाबी नीला पीला,
भंग तरंगं हैं छैल छबीला,
खड़खड़ गढ्ढा अड्डी टीला,
ठग्गू के लड्डू चिउरा चीला,
अब होरी के रंग मा झूमि जाओ,
मनु होय त कम्पू घूमि जाओ,

आला माला कान कै बाला,
स्थित प्रयागनरायन शिवाला,
हटिया कै खटिया बक्सा ताला,
नये गंज के मोटे लाला,
अखबारन मा अमर उजाला,
देखि बुनाई हैण्डलूमि जाओ,
मनु होय त कम्पू घूमि जाओ।

रचनाकार-राजेन्द्र अवस्थी....