रविवार, 28 जून 2015

पगली

युग बदले पर तुम ना बदलीं,
हम भी पागल तुम भी पगलीं,

पायल धुन है वही पुरानी,
प्रेम रीत भी है अनजानी,
मन तो मेरा पिघल चुका है,
लेकिन तुम अब तक ना पिघलीं,
हम भी पागल तुम भी पगली,

सावन तो आता जाता है,
पपिहा पंचम सुर गाता है,
फिर भी ना जाने क्यूँ हमको,
ऋतुएं लगती नकली,
हम भी पागल तुम भी पगली,

बरखा कैसे जलन मिटाए,
बूँद बूँद तन मन सुलगाये,
बैरन बन गई जान हमारी,
अब निकली  तब निकली,
हम भी पागल तुम भी पगली।

शुक्रवार, 26 जून 2015

रिश्ता रिसता है

आओ चलो मर चुके रिश्तों को दफना दें,

साथ साथ साथ था,
रात मधुर बावरी सी,
महकता सा गात था,
आज हम विलम्ब से,
विदाई गीत गुनगुना दें,
आओ चलो मर चुके........

भावना भी सुप्त हुईं,
बातें खूब गुप्त हुईं,
चुगलियाँ भी मुफ्त हुईं,
हाँथ अब वो छोड़ चले,
किसे हम उलाहना दें,
आओ चलो मर चुके......

नेह डोर टूट गई,
बचपन की यादें भी,
दूर कहीं छूट गईं,
वो तो हमें भूल चुके,
हम भी उन्हे बिसरा दें,
आओ चलो मर चुके......

गुरुवार, 25 जून 2015

रीता बचपन

खेल खिलौने पढ़ना लिखना,
हँसना तक वो छोड़ चुका है,
सुबह से लेकर रात तलक,
बस काम से नाता जोड़ चुका है,

अब गाई चराई रमपलवा,
बापु सिधारेस स्वर्गलोक,
औ घरु मा माई करै सोकु,
पेटु का खाली भा गढ़वा,
अब गाई चराई रमपलवा,
है उमिर बरस बारा कै बसि,
नेकर ढीली लीन्हेस कसि,
नंगे पाँव जरैं तरवा,
अब गाई चराई रमपलवा,
गोरू ख्यातन मा घुसे जात,
लाठी लीन्हे नान्ह हाँथ,
लखेदि लिहिस भुरउ पड़वा,
अब गाई चराई रमपलवा,
जेठु घाम औ मुख मलिन,
दउरि रहा है गाँव गलिन,
स्वाचन मा खाय़ रहा हेलुवा,
अब गाई चराई रमपलवा।

रविवार, 21 जून 2015

21 जून प्रथम विश्व योग दिवस

रेंगते हुए लोग,
ऊँची ऊँची फैकते लोग,
घिसटते हुए लोग,
चपटते हुए लोग,
इधर उधर भागते लोग,
फुटपाथ पर जागते लोग,
थमते हुए लोग,
जमते हुए लोग,
सड़कों पर चलते लोग,
लोगों को खलते लोग,
ये भी है एक प्रकार का योग,

नियत मुद्रा में हो स्थित,
ध्यानावस्था में अवस्थित

पीठ सीधी दृष्टि सामने,

संतुलित गति दूरी मापने,

मद्धिम श्वांस तीखी नज़र,

योग व्यस्त सारा शहर,

एकाग्रता यदि भंग होती,

चेतना फिर व्यग्र होती,

इंद्रियों पर कर नियंत्रण,

साधना का ले निमन्त्रण,

यात्रा रहती है जारी,

राह थकती है ना हारी,

आज वो है कल ये होगा,

राह मे होता है योगा,

बोलते चलते सभी,

पर मानते ना हैं कभी,

के तप सभी मिल कर हैं करते,

पर सभी मिलने से डरते,

राह से नव राह मिलती,

राह चढ़ती औ उतरती,

राह है पल पल बदलती,

मंज़िले ना रोज़ मिलतीं,

योग से जब योग जोड़ा,

कर लो सब मिल योग थोड़ा

शनिवार, 20 जून 2015

अस्तित्व

तुमको पास ना देख दूरी का अहसास हुआ, भले ही ह्रदय मे रुधिर की तरह उपस्थित हो, पर श्वेत कणिकाएँ कुछ कम हो चली हैं, यादों का सिलसिला श्वांस की तरह हो गया है, हाँ जब बिजली नहीं आती,तब तुम्हारे पास ना होने का अहसास दम घोटता हुआ सा लगता है, अधेरे मे तुम नज़र आने लगती हो कल्पनाओं मे, और मै ढ़ेर सारी बातें कर जाता हूँ तुमसे, वास्तव मे मुझे पता होता है कि तुम नही हो, अंधेरा कर गई रोशनी की तरह, लेकिन तुम्हारी अंधेरे की सौगात मुझे पसंद है, मुझे पता है ये भी कि जब तुम आओगी, तो रोशनी आयेगी मेरे कमरे में, जब तुम आओगी तो ज़मीन आवाज़ देगी, तुम्हारे आने की, जब तुम आओगी तो चंदन की महक भी आयेगी तुम्हारे साथ, जब तुम आओगी तो मेरा अस्तित्व भी अस्तित्व मे आयेगा, अरे..अस्तित्व हीन जीवन!!!!!!!!! क्या गज़ब का परिहास है, चलो कुछ तो है परिहास ही सही, पर है तो सही जीवन बिना अस्तित्व के भी, क्यों कि,मेरा अस्तित्व तो तुम्ही हो, क्यों कि, मेरा अस्तित्व तो तुम्ही हो..