बुधवार, 8 मई 2013

मुर्दों का मिलन


दो लाशें जीवित हो उठती हैं,
रोज़ रात को बिस्तर के ऊपर,
आलिंगन,
थोड़े से वार्तालाप के बाद,
अनिक्षित प्रेमालाप भी,
रात जितनी काली होती है,
निषिद्ध इच्छाएँ भी बलवती होती हैं,
थके हुए बदन,
टूटे हुए मन के साथ,
बनावटी संवेदना लिये,
गजरती रात में,
रोज मिलते है दो मुर्दे,
इस मिलन के साक्षी हो जाते है,
अनचाहे ही,
तकियों के गिलाफ़,
जो महसूस कर लेते हैं,
आंसुओ के नमकीन स्वाद को,
बिस्तर की चादर पर पड़ी सिलवटें,
देती हैं गवाही,
किसी के पुरुषार्थ की,
कमरे में रक्खी हर चीज़,
आतंकित हो जाती है,
रात के आने के साथ ही,
क्रूरता,लिप्सा,पीड़ा की,
जननी क्यूँ है रात?