सोमवार, 25 नवंबर 2013

निर्दोष-दोषी

किंतु किसी भी कहानी  को आखिर बिना प्रमाण के कैसे सच मान लिया जाय.?
तमाम महिलाओं की संवेदना को इस दुर्दांत घटना ने झंझोड़ा होगा..
गलतियाँ इंसानों से ही होती  हैं मै मानता हूँ कि, तलवार दंपत्ति ने अपनी बच्ची को नौकर के भरोसे छोड़ा और अपनी दुनियाँ में मस्त रहे..ये उनकी बहुत बड़ी गलती थी..किंतु आप स्वयं सोंचे कि क्या कोई माँ बाप अपने बच्चे का कत्ल सिर्फ इस बिना पर कर सकते हैं कि उनके संज्ञान में कुछ ऐसा आ गया था जो सामाजिक दृष्टिकोण से अनैतिक था?
जहाँ तक मैं समझता हूँ कि, हत्यारे का अभी तक पता ना चलना सरासर सी.बी.आई. की विफलता है...और अपनी विफलता ना स्वीकारते हुए...तलवार दंपत्ति को बली का बकरा बना दिया..कितनी भी बड़ी गलती हो...नौकर की हत्या और अपनी संतान की हत्या करने में बड़ा अंतर है..
यदि ऐसा भी मान लिया जाय कि लड़की के स्थान पर अगर लड़का होता और नौकर की जगह नौकरानी होती तो निश्चित ही नौकरानी को दोषीलमान लिया गया होता क्योंकि, हमारा सामाजिक तानाबाना औरत को केंन्द्र में रख कर बुना गया है..
आखिर दूसरी बार की जाँच में ऐसा क्या नवीन सूत्र सी.बी.आई. के हाँथ आ गया कि, तलवार दंपत्ति को दोषी करार दे दिया? मैं किसी का समर्थन नहीं करता और उस कानून पर भरोसा करता हूँ जो कहता है कि, चाहे हजार दोषी छूट जाँय लेकिन एक भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिये।

शनिवार, 23 नवंबर 2013

अधूरा इंसान

हमारे यहां आपस में सिर्फ बच्चे बोलते हैं,
बड़ों को फुरसत नहीं है,
फुरसत भी है तो मोहलत नही है,
दिलो मे मोहब्बत कि शोखी नही है,
और हमने भी मूक विजय अभी तक देखी नही है,
जीत का जज़्बा ह्रदय में भरा है,
घ्रड़ा के बीज से नफ़रत का वृक्ष हरा है,
गुज़री है अब तक,
उमर तो गुजरती ही रहेगी,
दिलों में नफ़रत भी रहेगी,
प्यार का अहसास अब रातों की बात हैं,
बडी ही अजीब इंसानों की जात है,
प्रवचन देते बड़े बड़े,
पर घर में भी सब मरें लड़ें,
दिखावों में जीना ही नसीब है,
जो दिखावे से दूर वो ही गरीब है,
अमीरी चाहता हर कोई है,
न जाने कहाँ इंसानियत सोई है,
जानवर थे हम,
ज़रूरतों ने इंसा बनाया,
इंसा बने हम तब ज़रूरतों ने ही हैवान बना दिया,
अब तो ज़रूरत बन चुकी है नफरत,
क्या इंसानियत मे ही है कुछ गफ़लत,
हम तो जानवर भी नही हैं,
ना ही बन सके इंसान,
दिखावा किया इंसान का,
और बने रहे हैवान,
काश़ कि सभी हैवान ही होते,
एक दूसरे के लिये शायद हैवान भी रोते,
आज हम आधे अधूरे इंसान ना होते।

बुधवार, 13 नवंबर 2013

हक का महीना... حق کا مہینہ


हिंदुस्तान के कुछ ब्राह्मणों का मानना है कि जब उन्हें यज़ीद और हुसैन के बीच घटित होने वाली लड़ाई की खबर मिली तो ब्राह्मणों के एक गिरोह ने हिंदुस्तान से इराक़ की ज़मीन की तरफ़ कूच किया ताकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मदद कर सकें।
जब यह लोग इराक़ की ज़मीन पर पहुंचे तो कर्बला की दर्दनाक घटना हो चुकी थी और हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके जान निछावर करने वाले साथी अपनी जान निसार कर शहीद हो चुके थे। यह ब्राह्मण गिरोह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ून का बदला लेने के लिए कूफ़े में मुख़्तार के सिपाहियों से जुड़ गया और सभी लोग मुख़्तार सक़फ़ी के साथ जंग में शामिल होकर शहीद हो गये। हिंदुस्तान में इन बृाम्हणों ने अलैहिस्सलाम की याद में अज़ादारी शुरू कर दी और  मुहर्रम के दिनों में ख़ास अंदाज़ में मजलिस, मातम और नौहा और मर्सिये का आयोजन करते हैं और हिन्दी, संस्कृति, पंजाबी उर्दू और कश्मीरी आदि में नौहा और मर्सिया के शेर लिखते हैं।

असरार नसीमी का ये शेर देखे...
'वाकिफ-ए-मर्जी-ए-रब थे नहीं मांगा पानी,
   वर्ना जब चाहते ठोकर से निकलता पानी,

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

सच तो सच है

किसी अति चर्चित व्यक्ति के निजी जीवन के बारे में चर्चा करना या किसी भी व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन पर बात करना क्या अपराध है?

वैसे इन दिनों ऐसा वृहदस्तर पर हो रहा है...

पहले मोदी क्या थे?
सोनिया क्या थीं?
मनमोहन सिंह के गाँव का नाम क्या है?
रॉबर्ट वाड्रा का व्यापार क्या है?
मोदी और राहुल ने शादी नहीं की तो क्यों नहीं की?
राबड़ी देवी ने छठपूजा कैसे की? आदि....

तो फिर चर्चा हो किस बात पर? हमारे ग्रंथ पुराण भी देवों की व्यक्तिगत चर्चा से भरे हुए हैं.....प्रकाण्ड साहित्यकारों का जीवनवृत्त पर भी चर्चा होती ही रहती है...
इन दिनों राजनैतिक दलों के बुद्धिमान नेता एक दूसरे पर नितांत निजी आक्षेप लगाने से भी नहीं चूक रहे हैं..
अमर्त्यसेन ने मोदी के खिलाफ क्या बोला कि, विद्वान जगत के लोगों ने उनकी पुत्री के चरित्र को रुई की तरह धुन डाला..
क्या जब लोगों की भावनायें आहत होती हैं तो एक मात्र अस्त्र चारित्रिक कुठाराघात ही विजय दिलाता है?

फिर भी ये जारी है.....क्या जो बीत गया उस पर चर्चा करना  व्यर्थ है? तो फिर इतिहास क्या है?
सदियों से हम दावा करते आये हैं कि, हमारा देश ऋषिमुनियों योगियों,ज्ञानियों ध्यानियों का देश है...हम समुन्नत सभ्यता और सर्वगुण सम्पन्न सांस्कृतिक विरासत को सम्हाले हुए विश्व गुरू बनने का दावा प्रस्तुत कर रहे हैं....तो क्या अपने समाज को हम विकसित समाज कह सकते हैं?
अधिकांश हिंदू परिवारों में पर्दा प्रथा को बड़ों को सम्मान देने के नजरिये से देखा जाता है....
बड़ों में क्या सिर्फ पुरुष वर्ग ही आता है? क्यों कि सासू माँ से तो किसी ने पर्दा किया ही नहीं!  तो फिर सासू माँ को स्वयं को अपमानित महसूस करना चाहिये!
बाल विवाह आज भी देश में रुका नहीं है,
देश में आधी आबादी का शोषण लगातार सदियों से जारी है, अक्सर चर्चा होती है...इसका लाभ भी मिला है फिर भी क्या वर्तमान स्थिति संतोषजनक कही जा सकती है?
देश में इन दिनों बलात्कारों की बाढ़ सी आई हुई है..
और अब तो स्थिति इतनी अधिक भयावह हो चली है कि, धर्म गुरुओं पर भी विश्वास करना मूर्खता कहाने लगा है...
बुद्धिमत्ता तो अज्ञान के अंधकार को मिटाती है फिर ये कैसा संदेश दिया जा रहा है हमारी आने वाली नई पीढ़ी को?
अमर क्रांतिकारी कवि अदम गोंडवी जी की ये पंक्तियाँ  आज भी सच्चाई का आइना समाज को दिखा रही हैं!

"वो जिसके हाँथों  में छाले और पैरों में बिवाई है,
उन्ही के दम से ये रौनक आपके बँगलों में आई है"

"काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में,
उतरा है रामराज्य विधायक निवास में"

जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक़्क़ाम कर देंगे
कमीशन दो तो हिन्दोस्तान को नीलाम कर देंगे

ये बन्दे-मातरम का गीत गाते हैं सुबह उठकर
मगर बाज़ार में चीज़ों का दुगुना दाम कर देंगे

सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे,
वो अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे।

प्रस्तुत पंक्तियों में समाज की कड़वी हकीकत को बयाँ किया गया है....और आज यदि इन्ही बातों को चर्चा में शामिल किया जाता है तो इनके अनगिनत समर्थक अभद्र शाब्दिक गोले दनादन दागने लगते हैं.....वाह री उन्नत सभ्यता...
हाय रे विकसित समाज....

मेरा व्यक्तिगत विचार ये है कि, किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन  पर चर्चा करना निसंदेह अनैतिकता की श्रेणी में आता है।