शुक्रवार, 31 जुलाई 2015

सावन आया..

करुँगा तुमको जी भर प्यार,
पहले दिल की बात बता दो,
रूठो ना हमसे हर बार,
प्यार का पारावार बता दो,
करुँगा तुमको जी भर....पहले दिल की बात....
बात तुम्हारी गुड़ियों वाली,
छलक रही यौवन की लाली,
आखिर कब तक करोगी,
हमसे हँसीं ठिठोली रार बता दो,
करुँगा तुमको जी भर....पहले दिल की बात....
पहरों में रहती हो ऐसे,
पलक में कोई ख्वाब हो जैसे,
देखूँ छुप छुप मिलन हो कैसे,
फिर से अगली बार बता दो,
करुँगा तुमको जी भर....पहले दिल की बात...
सावन आया पड़ गये झूले,
हम तुम मिल कर गगन को छूलें,
भोली सूरत वाली आकर,
प्यार का मुझको सार बता दो,
करुँगा तुमको जी भर.....पहले दिल की बात....

                                           राजेन्द्र अवस्थी..

रविवार, 19 जुलाई 2015

धोखा..मन की बात-4

बड़ा अफसोस होता है जब कोई मित्रता की आड़ में धोखा देता है। लेकिन ये तो कड़वा सच है कि धोखा तो वही देता है जो जान वाला होता है, हाँ इस धोखे की प्रबलता और बढ़ जाती है जब कोई स्त्री धोखा देती है क्यों कि स्त्री हमारी मानसिकता में सिरे से कमजोर,मूर्ख,और दयालु होती है इसलिये उसके द्वारा खाया हुआ धोखा आसानी से हजम नही होता..दरअसल हम आज भी मनुष्य को सभ्य नही कह सकते क्यों कि "सभ्य" शब्द कहने के लिये "सभ्य" शब्द की परिभाषा भी मालुम होनी चाहिये या कम से कम इतनी संतुष्टि तो स्वयं को होनी ही चाहिये कि "सभ्य" शब्द की आड़ मे कोई धोखा नही दिया जा रहा। लेकिन समस्या यहीं से शुरू होती है जब भी किसी पर या कहीं पर भरोसा करने की बात आती है तो वहाँ पर धोखा और झूठ भी होने की पूरी सम्भावना होती है बस अंतर ये होता है कि हम भरोसा कर लेते हैं विश्वास कर लेते हैं गैर पर अजनबी पर फिर उस गैर को अथवा अजनबी को अपना बनाते हैं उसके बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं. फिर उस पर भरोसा करते हैं क्यों कि भरोसा किसी गैर पर या अजनबी पर तो किया नही जाता और फिर जैसे ही भरोसा कायम होता है धोखा मिलने की शुरुआत हो जाती है अब देखना ये होता है कि धोखा कितने अर्से बाद मिलता है ऐसा भी नही कि हर बार विश्वास के बदले धोखा मिले ही किंतु ऐसा बहुत ही कम देखने में आता है हाँ ये अवश्य पुख्ता तौर पर कहा जा सकता है कि पति-पत्नी का सम्बन्ध पूर्णरूपेण विश्वास पर आधारित होता है, इसका अर्थ ये नही कि अन्य रिश्तों पर  यकीन ना किया जाय। ऐसा नही है.. विश्वास करना एक प्राकृतिक प्रक्रिया है इसे ऐसे समझ सकते हैं, मछली जल पर विश्वास करती है प्रत्येक प्राणी प्राणवायु पर विश्वास करता है ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं। अंतर इस बात से पड़ता है कि विश्वास करने से पूर्व आपने कितनी जानकारी जुटाई फिर भी इस बात की कोई गारण्टी नहीं है कि भरोसे के बदले धोखा नहीं मिलेगा...दरआस सिक्के के ये दो पहलू हैं। विश्वास-धोखा किसी के हिस्से में प्यास आई किसी के हिस्से में जाम आया ।

निष्ठुर

राहों में अब मत बैठो तुम,
प्रेम का आंचल फैला कर,
निष्ठुर बन वो मुंह फेरेगा,
चल देगा तुमे ठुकरा कर,
खून भले तेरा है उसमें,
दर्द दिये फिर भी छल कर,
तुम दर्द लपेटे आँचल में,
जीती हो जल जल कर,
सींचा अपने प्राणामृत से,
बड़ा हुआ है अब पल कर,
वही लुकाठी पकड़ के लाया,
तुझे छोड़ने घर बाहर,
पाषाण ह्रदय वो बन बैठा,
पाला जिसको मर मर कर,
खैर उसी की माँग रही तू,
ह्रदय पे फिर पत्थर धर कर।

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

सूंचना-बैसवारी

लखनऊ मेट्रो शुरू करने की योजना पर काम चल रहा है। ठेठ बैसवारी में एनाउंसमेंट कुछ इस प्रकार होंगें:

** भईया हाथ जोड़ि कै बिनती है कि दरवाजन ते हटि कै ठाड़ होएओ, नहीं तौ कूचे जइहौ।

** पीली लाइन के पिछेहे ठाड़ रहेओ।

** गाड़ी केर पहिलै डिब्बा मेहेरियन खातिर है, ओके भीतर जउन चढ़ी ओका कायदे मां हउंका जाई और जुर्मानौ कीन जाई।

** दरवज्जा दाईं तरफ़ खुलत है। ओके ऊपर हाथ धरि कै न ठाड़ होएओ सरऊ।

** गाड़ी मां मसाला, चाय, बीड़ी, पान सब बर्जित हैं। कउनौ यो सब खात मिला तो वहिका पेल दीन जाई।

** आगे आवै वाला सटेसन आलमबाग है, हिंयाँ ते उत्तर प्रदेश बस सेवा के सिटी सटेसन खातिर उतर लीन्हेओ और सरऊ कायदे मां उतरेओ नाहीं तौ आगे बड़े-बड़े गड़हा  हैं, घुसमुड़ा जहिऔ ओहमां।

** बुजुर्ग चच्चा लोगन और मेहेरियन खातिर चुप्पे ते जगह दई दीन्हेओ वरना लपेटे मां आ जहियओ।

** गाड़ी मां च्वारन ते सावधान रहेओ। ससुर बहुत बढ़िगे हैं।

बुधवार, 8 जुलाई 2015

प्रभात फेरी..

ले लो मेरा सब कुछ मेरे लिये सब बेकार है,
गुर्दा दे दो लोकतंत्र को उसी को दरकार है,
आँख मेरी तुम लगा दो बेशर्म कानून को,
भारत की माटी में मिलाना मेरे सारे खून को,
मिट चुकी है विश्व में जो शान हिंदुस्तान की,
वापस लाना है उसे कीमत हो चाहे जान की,
बेहोश करने की कोई ना जरूरत है मुझे,
देश के दुश्मन से बे-इंतहा नफरत है मुझे,
इसलिये तुम खींच लेना धमनियाँ सारी मेरी,
राखी का धागा बनाना बहन जो लुट कर मरी,
रोक देना साँस मेरी तुम कफन से मूँद कर,
आबोहवा निर्मल बनाना हर गली में ढूँढ़ कर,
राह के गड्ढों में भरना राख तुम मेरी चिता की,
संवेदना जीवंत रखना इस तरह मेरे पिता की,
ठोकर ना लग पाये उन्हे राह में चलते समय,
लड़खड़ायें  जब भी वो तो हाँथ में मेरे थमें,
जोड़ कर डण्डा बनाना हड्डियों को मेरी तुम,
फिर तिरंगे संग लगाना प्रभातियों की फेरी तुम,
इस तरह शायद उरिण हो जाऊँ माँ के कर्ज से,
माँ भारती के पुत्र का नाता निभा दूँ फर्ज से।

मंगलवार, 7 जुलाई 2015

सुरक्षा-हास्य-व्यंग

इंसान का टेस्ट भी अजीब है.......अधिकांश पुरुषों का दिन अखार से शुरू हो कर टी.वी.न्यूज़ पर समाप्त हो जाता है।
गाँवों में भी खबरची होता था जो एक समाचार पत्र खरीद कर अन्य लोगों को खबरें पढ़ कर सुनाया करता था।
खबरें सुना कर भी लोग अपना मनोरंजन किया करते थे।
समय के साथ इस शगल का लुत्फ लेने वालों की संख्या में इजाफा हुआ......और जैसे ही दहेज में ट्रांजिस्टर मिलने लगे....लोगों का रुझान अखबार की खबरों में समाप्त होने लगा....
अब तो गाँव की चौपाल पर ट्रांजिस्टर को घेर कर समाचार सुनते लोग। किंतु शहरों में समाचार पत्र रोज सवेरे लोग नाश्ते में लेते रहे....अखबार भी खबरो को चटपटी,रसीली,सनसनाती हुई..दिल दहलाने वाली बता कर खूब पैसा बटोरने लगे....
एक समय था जब लोगों को कन्या भ्रूण हत्या के बारे में अखबारों से पता चला कि, शहरों में विदेशी मशीने लगी है जो जन्म लेने से पहले ही ये बता देती हैं कि...पैदा होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की...फिर क्या था इस चमत्कार को नमस्कार करने अधिकांश नवविवाहित जोड़े पहुंचने लगे पैथॉलोजी वालों ने खूब रकम काटी और फिर सरकार ने इस लिंग परिक्षण को  अपराध घोषित कर दिया ...इस खबर से अखबार वालों का तो कोई लाभ नही हुआ किंतु लिंग परिक्षण करने वालों ने चोरी से ये परिक्षण करना जारी रक्खा और चाँदी काटते रहे।
अचानक टेस्ट बदला...और दहेज हत्या .....मुख्य खबरों में शुमार होने लगी....फिर तो देश भर में दहेज हत्याओं की बाढ़ सी आ गई.दहेज हत्या.........और प्रेम हत्या की खबरों ने फिर से लोगों को चर्चियाने का अवसर प्रदान कर दिया.....हंलाकि, बीच बीच में अन्य खबरे भी खदबदाती रहीं...जैसे कि....चुनाव चकल्लस,किरकिटिया कमेंट्री,बाँकी सीजनल समाचार जैसे....होली,दिवाली,दशहरा,क्रिसमश के बारे में लोग पूरे वर्ष भर चाय के साथ मजे लेते रहे...अब देखने वाली बात ये है कि, सूंचना माध्ममों की पहली पसंद और खबरों के केंद्र में कौन रहा?  जी हाँ....
                         "स्त्री"
मतलब बिन स्त्री सब सून....
इस महान देश भारत में सदियों से स्त्रियों का शोषण होता आया है....कभी घूंघट की आड़ में कभी मान मनुहार लाड़ में....हमारे एक बहू बेटे वाले मित्र नें हमसे पूंछा......ताला किसके लिये होता है?  मैने कहा सज्जनों के लिये। वो मेरी बात से सहमत हुए...
फिर हमने पूंछा...घूंघट किसके लिये?  क्यों कि, हमारे विद्वान मित्र की बहू घूंघट करती है और वो इसके पक्षधर भी थे........
वो बोले सम्मान के लिये...और अपनी सुरक्षा के लिये....हमने पूंछा...सम्मान किसका और सुरक्षा किससे?किसकी?
मित्र कहने लगे...बड़ों का सम्मान और स्वयं की सुरक्षा.......अपने से बुज़ुर्ग और विद्वान मित्र का इतना सारगर्भित तर्क सुन कर मैंने कहा.......
अरे भाई, आपका ये सुझाव यदि देश के सैनिको तक पहुंचा दिया जाय तो  उनका कल्याण हो जाए......सारे सैनिक घूंघट करके जंग जीतते और सम्मान के साथ साथ सुरक्षा भी प्राप्त कर लेते....इतना सुनते ही मित्र का पारा हाई हो गया.....बोले-  तुम कहीं की बात को कहीं से जोड़ देते हो...
मैने कहा, ज़रा ये भी स्पष्ट कर दें कि, घूंघट करने से सुरक्षा कैसे सम्भव है? बिना उत्तर दिये वो तमतमाते हुए चले गये.....
मित्रों मैं उत्तर की प्रतिक्षा में हूँ.....

विस्मय..

विस्मय क्यूँ कर हुआ तुम्हे ये बात हमें तुम बतलाओ,
दीवारें हिलती पर्दों सी देख जरा ना घबराओ,

स्वर्णिम बादल सूरज घेरे किरणें कैदी हो जातीं,
परेशान सा जलता दीपक औ रोगी रोती बाती,
रुग्ण मनस हो चला हो जैसे अंधकार का प्रेत,
मुर्दों की फसलें बह जाती खाली रहता खेत,
चकित क्यूं होता चित्त चरित कुछ तो इसको समझाओ,

विस्मय क्यूँ कर हुआ तुम्हे ये बात हमें तुम बतलाओ

खड़े हुए सब उसी जगह पर जहाँ से कल भागे थे,
शवों की हड्डी पकड़ के कहते हम तो कल आगे थे,
नित नित धूप जलाती चाँदनी चंदा संग ढलती है,
शहर नही है मरा हुआ यहाँ लाशे तक चलती हैं,
कौतुक मत जानो इसको ना जरा कहीं तुम भरमाओ,

विस्मय क्यूँ कर हुआ तुम्हे ये बात हमें तुम बतलाओ,

कितना सारा नियम बना औ तर्क-वितर्क बहुतेरे,
शब्द लब्ध भी हुए तो क्या मर्कट तो दुनियां घेरे,
काश जो होता मैं उस पल जीवन गीत सुना देता,
सूने से शहरों में साथी प्रीत की रीत चला देता,
भौचक हो क्या देख रहे इक बार मुझे भी अजमाओ,

विस्मय क्यूँ कर हुआ तुम्हे ये बात हमें तुम बतलाओ

सोमवार, 6 जुलाई 2015

फूल जो मिला किताब में.

खो गया था जो कभी कहीं,
फूल वो मिला किताब में,

खेलती थी साथ जो मेरे,
छुपती है वो अब हिजाब में,
मिलती है जो अब अगर कहीं ,
सवाल रहता हर जवाब में,

खो गया था जो कभी कहीं,
फूल वो मिला किताब में,

मुब्तिला है दिल बहुत मेरा,
महबूब के इश्क ए अजाब में,
आज सोचता हूँ बैठ कर,
क्या कमी हुई हिसाब में,

खो गया था जो कभी कहीं,
फूल वो मिला किताब में,

पता नहीं अभी तलक चला,
क्या मिला इश्क ए खिताब में,
पूँछता हूँ हाले ए दिल अगर,
कहा दिल नही बचा जनाब में,

खो गया था जो कभी कहीं,
फूल वो मिला किताब में,

रविवार, 5 जुलाई 2015

नेता

नेता जी मुस्कराये,
सबने देखा,
होंठो में खिची महीन रेखा,
चेहरा अजीब दिख रहा था,
उनका पुत्र ये सब सिख रहा था,
आखिर आने वाले कल का नेता है,
पिता पुत्र को विरासत देता है,
कुटिल मुस्कान,
छीना हुआ सम्मान,
साजिशों का बस्ता,
संस्कार सस्ता,
पुत्र भी मुस्करायेगा,
जब नेता बन जायेगा,