मंगलवार, 26 जुलाई 2011

द्वन्द...



शब्द नही है प्यार है मेरा,शब्दों का संसार है मेरा, अगणित बातें कहने को(कलम)ब्लॉग ही अब आधार है मेरा.

        द्वन्द...


फिर से कम्पित हुआ ह्रदय और अंतस में झंकार हुई,
बीती रात ख्यालों में सपनो से तकरार हुई,

बेगाना था ख़्वाब मेरा  पर अपनी थी नींद मेरी,
जाने कितनी रची बसी ह्रदय में मेरे याद तेरी,

वो पल फिर से घुमड़ रहा जब जोगिन कोई नार हुई,
फिर से कम्पित हुआ ह्रदय और अंतस में झंकार हुई,

रुनझुन ध्वनि तेरी पायल की कर्ण विवर में गुंजित है,
नयन पटल है बंद मेरे पर आकृति तेरी मंचित है,

बंद नयन की कोरो से बरखा सी आंसू धार हुई,
फिर से कम्पित हुआ ह्रदय और अंतस में झंकार हुई,


मेरे स्मृति पट पर आज भी तुम बिन पूंछे ही आ जाती हो,
बंद पलक के भीतर से तुम इतना क्यों शर्माती हो,

मौन स्वरों में आपस में तब बातें सौ सौ बार हुई,
फिर से कम्पित हुआ ह्रदय और अंतस में झंकार हुई,

धमनी थिरक रही मेरी रक्त शिराए विचलित है,
लेखनी थर थर काँप रही शब्द भी चुप अब नित नित है,
ऋतु पतझड़ की जैसे अब मेरे जीवन का त्यौहार हुई,

फिर से कम्पित हुआ ह्रदय और अंतस में झंकार हुई,

प्रकृति लपेटे देह में तुम मै गाता गीत भ्रमर जैसा,
जिस मंजिल में तुम साथ नही एकल मेरा वो सफर कैसा,

अब अंतर द्वन्द हरो मेरा तुम जीती मेरी हार हुई,
फिर से कम्पित हुआ ह्रदय और अंतस में झंकार हुई,

बीती रात ख्यालों में सपनो से तकरार हुई,

सोमवार, 25 जुलाई 2011

मन...



जब मन विचलित होता मेरा मै सोचूँ गीत नया गाऊँ,
स्मृति कड़ियाँ जोड़ के फिर यादों की अंजुरी भर लाऊँ,

मै अचल रहा मन विकल रहा,
सब जीवन सम्प्रति पिघल रहा,
तब द्वार त्रिलोकीनाथ तेरे मै उम्र बढाने क्यों आऊँ,
            
          जब मन विचलित होता मेरा मै सोचूँ गीत नया गाऊँ,
           स्मृति कड़ियाँ जोड़ के फिर यादों की अंजुरी भर लाऊँ,

शर डगर भरे,अब नर है मरे,
नैतिकता जब पतित हुई  इस जीव जगत में सभी डरे,
विधि तो सोच रही शायद इस बार ही मै अब डर जाऊं,
            
          जब मन विचलित होता मेरा मै सोचूँ गीत नया गाऊँ,
          स्मृति कड़ियाँ जोड़ के फिर यादों की अंजुरी भर लाऊँ,

सुख दुःख है अगणित जीवन में,सब कष्टों का संसार है ये,
है दया क्षमा करुना नफरत,संवेदन शीतल प्यार है ये,
सबरंग रंगा भ्रमित मन मेरा कौन सा रंग लगाऊँ,
            
            जब मन विचलित होता मेरा मै सोचूँ गीत नया गाऊँ,
            स्मृति कड़ियाँ जोड़ के फिर यादों की अंजुरी भर लाऊँ,

उन्मुक्त गगन की आशा में मन पाखी अब उड़ता मेरा,
बड़ा कठिन है दुनिया में जीवन म्रत्यु का ये फेरा,
मानुष हूँ आशान्वित हूँ मै फिर से कवि  बन आऊँ,
        
          जब मन विचलित होता मेरा मै सोचूँ गीत नया गाऊँ,
          स्मृति कड़ियाँ जोड़ के फिर यादों की अंजुरी भर लाऊँ,


शनिवार, 23 जुलाई 2011

बवाली बाल..





अपनी इस रचना के माध्यम से मै अपने विलुप्त हुए
बालों को श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ ............



बाल है बवाली भैय्या बाल है बवाली,

डाबर आंवला तेल लगा के खूब किया रखवाली,

धोखा खा गए फिर भी मित्रों खेत हो गया खाली,

फिर भी खेत हो गया खाली,

बाल है बवाली भैय्या बाल है बवाली,

लटें कभी थी मेरी यारों काली सी घुंघराली,

बेगम रह गई पीछे हम पे रीझ गई मेरी साली,

हम पे रीझ गई मेरी साली, बाल है बवाली भैय्या बाल है बवाली,

सारे जतन किये थे फिर भी कर गए हम से धोखा,

ताना देने का अब बेगम छोड़े न कोई मौक़ा,छोड़े न कोई मौक़ा,

निर्गुण है घर वाली भैय्या बाल है बवाली,

छैला दीखते हम भी सर पे बाल मेरे जब छाते,

नई नई स्टाइल बना के ईलू ईलू गाते,

अब तो सर पर दिखती जाली भैय्या बाल है बवाली,

बाल है बवाली भैय्या बाल है बवाली,

बाल मेरे सर होते अब जो करली हेयर करते,

कैरेक्टर का सर्टीफिकेट वेरी फेयर भरते,

छवि बहुरुपिया सी पा ली भैय्या बाल है बवाली,

बाल मेरे लंबे थे इतने लोग समझते लड़की,

एक बार जब चोटी बनाई कमर से नीचे लटकी,
फिर पहना कान में बाली, भैय्या बाल है बवाली,

बाल है बवाली भैय्या बाल है बवाली,

यादाश्त कमजोर है इनकी उगना भूल चुके है,

केश के कारन ह्रदय में मेरे लाखों शूल चुभे है,

उजड गया है उपवन बैठ के रोता है अब माली,

बाल है बवाली भैय्या बाल है बवाली,

अब तो मित्रों बाल बाल से बाल बाल मै बचता,

अगर जो होते बाल मेरे ये रचना कैसे लिखता,

कविता बालों पर लिख डाली भैय्या बाल है बवाली,

बाल है बवाली भैया बाल है बवाली........

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

माँ तुम कहाँ हो..



शब्द नही है प्यार है मेरा,शब्दों का संसार है मेरा, अगणित बातें कहने को(कलम)ब्लॉग ही अब आधार है मेरा.

माँ तुम कहाँ हो..


इस गीत की पंक्तियाँ यहाँ लिखना आवश्यक लग रहा है, "वो होते है किस्मत वाले जिनके माँ होती है"






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माँ तुम कहाँ हो मैंने तुम्हे कभी नही देखा,

लोग बताते है तुमसे ही पैरों पर चलना सीखा,

मुझे भरोसा है लोगों की बातों पर,

कुछ गुस्सा भी आता है उन सूनी रातों पर,


जब ह्रदय में होती थी छटपटाहट,

रात्रि की नीरवता में छोटी सी आहट,

अवरुद्ध होता ह्रदय स्पंदन,

मौन करता करुण क्रंदन,

जी करता चीख चीख कर रोएँ,


माँ तुम ही बताओ तुम्हारे बिना हम कैसे सोएं,

पर अब तो मै बड़ा हो गया हूँ

अपने पैरों पर खड़ा हो गया हूँ,

काश तुम होतीं तो कितना अच्छा होता,

तुम होती और मै छोटा बच्चा होता,

तुम्हारी गोद में सर रख कर सोता,


तुम्हारे आंचल में मुंह छुपा कर रोता,

तुम ढूंढती मै छुप जाता,

तुम बुलाती मै रुक जाता,

तुम हँसती तो मै भी हंसता,

तुम रोटी तो मै भी रोता,

तुम्हारी डाट फटकार भी लगती अच्छी,

तुम्हारी चितवन सीधी सच्ची,

तुम्हारी याद नही आती,तुम सदा ह्रदय में रहती हो,

निर्मल विचार बन कर मष्तिष्क में बहती हो,

तुम्हारा स्वर गूंजता है कानो में,

डर नही लगता अब वीरानो में,

क्यों की तुम साथ हो मेरे हर पल,

हाँ तुम साथ हो मेरे हर पल...हाँ तुम साथ हो मेरे हर पल...

बुधवार, 20 जुलाई 2011

घर मेरा घर.


घर मेरा घर.









ईंटों से गिरती फफूंदी ना देखो,


देखो टिमटिमाते तारों का घर,

मेरे घर का दरका सा आंगन ना देखो,

देखो स्नेहिल दीवारों का घर,

कुछ रद्दी से कागज भी बिखरे दिखेंगे,

गद्दे रजाई भी उधड़े दिखेंगे,

कोने में दिखेगी पडी हुई कटोरी,


अद्रश्य प्रेम की मजबूत डोरी,

ना देखो बेतरतीब बिखरा सा कूड़ा,

देखो मेरी माँ के हांथों का चूडा,

हर कोने में घर के ज़न्नत है बिखरी,

कण कण में जीवन की आशाएं निखरी,

छत से टपकता तुम देखो ना पानी,

इसी घर में गुजरी है मेरी नादानी,

मेरा घर है यादों का निर्मल सरोवर,

मेरी बूढ़ी दादी के सपनों का जेवर,

कही से भी घर को हमने तोडा नही है,

नई कोई दीवार भी जोड़ा नही है,

अभी भी मेरा घर है वैसे का वैसा,

दादा ने अपने पीछे छोड़ा था जैसा,

सपनों का घर,संस्कारों का घर,

सावन की रिमझिम फुहारों का घर,सावन की रिमझिम फुहारों का घर,

बुधवार, 6 जुलाई 2011

माया की महिमा..

अपने शहर कानपुर की दुर्दशा देखी ना गई, अतः शब्दों के माध्यम से ह्रदय की पीड़ा को द्रश्यांकित करने का प्रयास किया है...


झूम झूम के बरखा नाची,पवन हुई दीवानी,

कानपुर की फूटी किस्मत घरों में भर गया पानी,

दिखलाया फिर कीचड़ ने भी अपना असली रूप,

गर्मी का अनुपात बढ़ गया निकली खुल कर धूप,

कीचड़ हँस के बोला मुझसे क्यों डरते हो भाई,

कानपुर की शान देश में हमने ही बढ़ाई,

बच कर जितना चलो मगर हर इंसा फिसल रहा है,

गिर गड्ढे में जाम में फंस कर दम तक निकल रहा है,
 
आजिज है सब नगर निवासी बच्चे बूढ़े पट्ठे,

कोई तो बोलो गड्ढे में है कानपूर या कानपुर में गड्ढे,

गजब नजारा कानपुर का बदल रहा है पल पल,

सम्हल के चलना जमीं दिख रही लेकिन होगा दलदल,

बौराई है मक्खी सारी कैसे भिनक रहीं है,

बोदे पर कर ता ता थैया कैसे थिरक रही है,

कम्पू है ऐतिहासिक नगरी है इतिहास गजब का,

कानपुर में आकर देखो करो सामना सच का,

मैनचेस्टर है भारत का यहाँ है राजे महाराजे,

सभी रोड पर है गड्ढे जो अभी खुदे है ताजे,

कदम कदम पर मुश्किल फिर भी कमी नहीं है प्यार की,

कानपुर में बिखरी महिमा मायावती सरकार की.


सब मिल के बोलो कर्मनिष्ट कर्तव्यनिष्ट साध्वी बहन मायावती जी की जय..............