सोमवार, 31 अक्तूबर 2016

आदरणीय गोपालदास "नीरज" से प्रेरित हो कर.. "दिया मुस्कराए"

इस न्यारी धरा पर जले दीप जब भी,
जले ना पतंगा दिया मुस्कराये,

जगे ज्योति मन में छँटे धुंध तम की,
अधमता,निराशा,मिटे प्राण से सब,
रहे चित्त निर्मल बने शक्ति कोमल,
रहे मुख दमकता प्रभू से मिलूँ जब,
स्वागत निशा जो करे फिर तिमिर का,
तिमिर सर झुका कर यही गीत गाये,
इस न्यारी धरा पर जले दीप जब भी,
जले ना पतंगा दिया मुस्कराये,

दिया एक हो तो ना होंगे अँधेरे,
बिसारो विगत हाँथ स्वागत बढ़ायें,
मस्जिद के आले में औ हर शिवाले में
श्रद्धा का नन्हा सा दीपक जलायें,
जले झूम कर जब दिया एकता का,
हिम्मत है किसकी जो इसको बुझाये
इस न्यारी धरा पर जले दीप जब भी,
जले ना पतंगा दिया मुस्कराये,

ऋषियों की धरती पे दीपों की माला,
रहे जगमगाती धरा जब तलक है,
कहीं रतजगा हो कहीं हो तिलावत,
फ़लक भी जगे है न झपके पलक है,
उठे गीत फिर जो सभी के लबों से,
सदियों से सदियाँ गुज़रती ही जायें,
इस न्यारी धरा पर जले दीप जब भी,
जले ना पतंगा दिया मुस्कराये।

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