रविवार, 5 अगस्त 2012

जिजीविषा


मै अरूप अचिन्ह,
मन: मृदा खिन्न,
चला करने संस्कारित जगत,
ना कोई युक्ति ना कोई जुगत,
ईमानदारी का प्रवचन,
संस्कारों की खुरचन,
मौलिकता का आवरण,
भावनायें भावप्रवण,
सत्य की कसौटी,
पुरखों की बपौती,
मन में धार्मिकता,
सोंचो की सार्थकता,
लिये कांधे पर बोझ,
ज़िदंगी जीना है रोज,
लिखना फिर मिटाना,
खानाबदोशों  सा ठिकाना,
बना उदारता का प्रतीक,
दुनिया भर से लेता रहा सीख,
परम्परा रीति रिवाज़,
संस्कृति और समाज,
सीख पाया बस यही,
जिजीविषा  चुकती नही,
पूर्ण अब जीवन मेरा,
साथ जो पाया तेरा,
हाय मै अब क्या करूँ,
तेरा प्यार किस कोने भरूँ,
बस रक्त सिंचित प्यार है,
तेरा बहुत आभार है,

                   " राजेंद्र अवस्थी कांड "

स्वागतम


अहा प्रात स्वागत है तेरा,

मन में मोती भर लाया हूँ,
कल ही रात तो घर आया हूँ,
हुआ प्रकाशित तम जीवन का,
भ्रमित नहीं चेतन मन मेरा,

अहा प्रात स्वागत है तेरा,
 कलुषित कल को छोड़ चुका मैं,
लिप्सा का दिल तोड़ चुका मैं,
छोड़ रहा इक इक पल मुझको,
टूटा कल्पित स्वप्न भी मेरा,

अहा प्रात स्वागत है तेरा,

आनंदों का स्वामी बन कर,
मुट्ठी में सुख सारे भर कर,
रिक्त है अंजुरी आ जा प्रियतम,
भर लूँ चेहरा तेरा,

अहा प्रात स्वागत है तेरा,