मंगलवार, 12 नवंबर 2013

सच तो सच है

किसी अति चर्चित व्यक्ति के निजी जीवन के बारे में चर्चा करना या किसी भी व्यक्ति के व्यक्तिगत जीवन पर बात करना क्या अपराध है?

वैसे इन दिनों ऐसा वृहदस्तर पर हो रहा है...

पहले मोदी क्या थे?
सोनिया क्या थीं?
मनमोहन सिंह के गाँव का नाम क्या है?
रॉबर्ट वाड्रा का व्यापार क्या है?
मोदी और राहुल ने शादी नहीं की तो क्यों नहीं की?
राबड़ी देवी ने छठपूजा कैसे की? आदि....

तो फिर चर्चा हो किस बात पर? हमारे ग्रंथ पुराण भी देवों की व्यक्तिगत चर्चा से भरे हुए हैं.....प्रकाण्ड साहित्यकारों का जीवनवृत्त पर भी चर्चा होती ही रहती है...
इन दिनों राजनैतिक दलों के बुद्धिमान नेता एक दूसरे पर नितांत निजी आक्षेप लगाने से भी नहीं चूक रहे हैं..
अमर्त्यसेन ने मोदी के खिलाफ क्या बोला कि, विद्वान जगत के लोगों ने उनकी पुत्री के चरित्र को रुई की तरह धुन डाला..
क्या जब लोगों की भावनायें आहत होती हैं तो एक मात्र अस्त्र चारित्रिक कुठाराघात ही विजय दिलाता है?

फिर भी ये जारी है.....क्या जो बीत गया उस पर चर्चा करना  व्यर्थ है? तो फिर इतिहास क्या है?
सदियों से हम दावा करते आये हैं कि, हमारा देश ऋषिमुनियों योगियों,ज्ञानियों ध्यानियों का देश है...हम समुन्नत सभ्यता और सर्वगुण सम्पन्न सांस्कृतिक विरासत को सम्हाले हुए विश्व गुरू बनने का दावा प्रस्तुत कर रहे हैं....तो क्या अपने समाज को हम विकसित समाज कह सकते हैं?
अधिकांश हिंदू परिवारों में पर्दा प्रथा को बड़ों को सम्मान देने के नजरिये से देखा जाता है....
बड़ों में क्या सिर्फ पुरुष वर्ग ही आता है? क्यों कि सासू माँ से तो किसी ने पर्दा किया ही नहीं!  तो फिर सासू माँ को स्वयं को अपमानित महसूस करना चाहिये!
बाल विवाह आज भी देश में रुका नहीं है,
देश में आधी आबादी का शोषण लगातार सदियों से जारी है, अक्सर चर्चा होती है...इसका लाभ भी मिला है फिर भी क्या वर्तमान स्थिति संतोषजनक कही जा सकती है?
देश में इन दिनों बलात्कारों की बाढ़ सी आई हुई है..
और अब तो स्थिति इतनी अधिक भयावह हो चली है कि, धर्म गुरुओं पर भी विश्वास करना मूर्खता कहाने लगा है...
बुद्धिमत्ता तो अज्ञान के अंधकार को मिटाती है फिर ये कैसा संदेश दिया जा रहा है हमारी आने वाली नई पीढ़ी को?
अमर क्रांतिकारी कवि अदम गोंडवी जी की ये पंक्तियाँ  आज भी सच्चाई का आइना समाज को दिखा रही हैं!

"वो जिसके हाँथों  में छाले और पैरों में बिवाई है,
उन्ही के दम से ये रौनक आपके बँगलों में आई है"

"काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में,
उतरा है रामराज्य विधायक निवास में"

जो डलहौज़ी न कर पाया वो ये हुक़्क़ाम कर देंगे
कमीशन दो तो हिन्दोस्तान को नीलाम कर देंगे

ये बन्दे-मातरम का गीत गाते हैं सुबह उठकर
मगर बाज़ार में चीज़ों का दुगुना दाम कर देंगे

सदन में घूस देकर बच गई कुर्सी तो देखोगे,
वो अगली योजना में घूसखोरी आम कर देंगे।

प्रस्तुत पंक्तियों में समाज की कड़वी हकीकत को बयाँ किया गया है....और आज यदि इन्ही बातों को चर्चा में शामिल किया जाता है तो इनके अनगिनत समर्थक अभद्र शाब्दिक गोले दनादन दागने लगते हैं.....वाह री उन्नत सभ्यता...
हाय रे विकसित समाज....

मेरा व्यक्तिगत विचार ये है कि, किसी भी व्यक्ति के निजी जीवन  पर चर्चा करना निसंदेह अनैतिकता की श्रेणी में आता है।