शनिवार, 25 अगस्त 2012

प्रेम अगन


मन भीतर की प्रेम अगन तुम कैसे कहो बुझाऊं मैं
राधा राधा कहते कहते क्या कान्हा बन जाऊँ मैं,                                              तान सुरीली धड़कन वाली कम्पित झंकृत होती है,
लाल सुनहरे हरे बैंगनी रंग नयन मे बोती है,
तुम नयना नीचे कर लेती मौन हो क्या समझाऊँ मैं,
मन भीतर की प्रेम अगन तुम कैसे कहो बुझाऊं मैं,
राधा राधा कहते कहते क्या कान्हा बन जाऊँ मैं,
बीती ऋत सावन की फिर भी कोयल गीत सुनाती है,
तेरे मेरे प्रेम की वीणा निशदिन मधुर बजाती है,
तुम भी सुन लो प्रेम रागिनी क्या कोयल बन गाऊँ मैं,
प्रेम अगन
मन भीतर की प्रेम अगन तुम कैसे कहो बुझाऊं मै,
राधा राधा कहते कहते क्या कान्हा बन जाऊँ मैं,
बिजुरी तड़प रही विरहन सी घटा ह्रदय पर छाई है,
हरे विधाता जतन करो कुछ कैसी अगन लगाई है,
प्रेम अनल निर्मल सब कहते फिर क्या मलय लगाऊँ मैं,
मन भीतर की प्रेम अगन तुम कैसे कहो बुझाऊं मैं,
राधा राधा कहते कहते क्या कान्हा बन जाऊँ मैं,

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