मंगलवार, 18 नवंबर 2014

वसंत..

वसंत तुम क्यों आ जाते हो,
गीत निर्मल नेह का,
तुम क्यों सुनाते हो,
वसंत तुम क्यों......

अवरुद्ध होता ह्रदय कम्पन,
सुरभि सुरभित नेह ये मन,
प्रकृति का मेला धरा पर,
उत्फुल लगाते हो,
वसंत तुम क्यों आ जाते हो...

नव चेतना भरते धरा में,
व्यापते जर औ जरा में,
नापते हो दृष्टि के सुख,
विरहन को तपाते हो,
वसंत तुम क्यों आ जाते हो......

प्रकृति के रंगीन झरने,
मन मनोहर विपुल सपने,
भ्रमर कलियों के ह्रदय,
तुम क्यों रिझाते हो,
वसंत तुम क्योंआ जाते हो......

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