मंगलवार, 18 नवंबर 2014

भाई-भाई

भाई-भाई..

तुमने खूब सवाल किये हैं,
हमने अपने होंठ सिंये हैं,
कातर आँखें पलक झपकती,
साथ ये कैसा अलग जिये हैं,

हरदम करते हो मनमानी,
फिर कहते हो गई नादानी,
तर्क कुतर्कों से करते हो,
हर हरकत की खैरमख्वानी,

जी भर जाये जब जिद्दों से,
ना रहना फिर शरमिंदो से,
कर लेना तुम सोंच को व्यापक,
दुनियाँ भरी हुई गिद्धों से,

तुमने खूब सवाल किये हैं,
हमने अपने होंठ सियें हैं,
इसी तरह बचपन से अबतक,
हम तुम दोनो साथ जिये हैं।

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