गुरुवार, 6 सितंबर 2012

जामुनी पुतलियाँ


उल्लास गतिमान था,
शाम सहज हो कर आई,
ह्रदय का विचलन,
सब समझ रहे थे,
बचपन
इंतज़ार कर रहा था,
नाना के आने का,
आ गये..
राह मे ही,
उनको उठा होगा,
नेह का मीठा दर्द,
लोटे मे रख लिये थे,
उन्होने थोड़े से
प्रेम के जामुन,
बरामदे मे रक्खे सिलबट्टे पर,
लोटे को उल्टा कर के धीरे से,
जामुन रख दिये
गहरी सांस के साथ,
जैसे भार थे जामुन
बृम्हाण्ड का,
गोल जामुनों के साथ,
नन्ही आँखो की पुतलियाँ भी जामुनी हो गईं,
इंतज़ार अभी भी जारी है,
जामुन प्रेम के है, प्रेम मे हैं,
तो क्या,
सफाई फिर भी होगी,
जामुनों की कम
अपने मन की ज्यादा,
नन्ही आँखों मे पीलापन ना झलक जाए,
जामुन को आत्मसात करने के बाद,
व्यग्रता बढ़ी,और बढ़ी,
सभी के साथ
नाना की मुस्कान भी,
अम्मा धुल रही हैं जामुन,
बेचैनी नन्ही आँखों में जामुन बन गई,
धुले हुए जामुन
अम्मा का स्नेह,
अब गुलाबी हँथेली अनुशासन तोड़ेगी,
एक प्रेम की नीली गोली,
नेह सी चमकती हई,
अम्मा के वरदान जैसी,
गुलाबी नन्ही हँथेली पर आने को है,
कि, तभी माई ने डाँटा अभी नही,
बस चाय गरम हो गई डाँट से,
अम्मा की पुचकार,
चाय पहले,
बाद में प्यार,
नन्हे पाँव धरा को दबाने लगे,
धरा भी मुस्कराई,
नानी के साथ,
माई गंदी नही होती,
तभी तो चाय गरम कर दी,
अब फूंक से क्रोध शीतल करेगी,
शीतल होगा सबका ह्रदय भी,
उल्टी बाट के कटोरे से चाय पीना,
समुद्र की अतल गहराई में होना है,
गिलट का गिलास मामा के पास,
द्वीप की गर्मी से भी ज्यादा गरम,
उमस उठाती भाप,
उनको अच्छी लगती है शायद,
अच्छी लगेगी शीत हो चुकी चाय,
जब नन्ही हँथेली पर,
जामुन होगा प्रेम का।


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