बुधवार, 8 अगस्त 2012

बचपन

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        मन बड़ी बड़ी बातें करते हुए छोटा सा बच्चा लगता है,
        यही बचपन मुझे अच्छा लगता है,
        साथ हो सरसता सरलता के,
        बीज उर धरे हो तरलता के,
        शीलता तो बरबस हो,
        स्वाभिमानी तरकश हो,
        हो शब्द की मधुर शाला तो अच्छा लगता है,
        बस यही बचपन तो मुझे अच्छा लगता है,
        चाल हो दुलक प्यारी,
        हरकतें भी हों न्यारी,
        ना हो बुद्धू ना ज्ञानी ,
       जानता हो ना जो ये आग है के है पानी,
        सीधा सा सयानापन  कच्चा लगता है,
        बस हाँ यही बचपन तो मुझे अच्छा लगता है।


6 टिप्‍पणियां:

  1. दिल से निकली हर एक कविता का अलग अहसास होता है ...जो दिल को ही चीर देता है

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  2. दिल से निकली हर एक कविता का अलग अहसास होता है ...जो दिल को ही चीर देता है

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  3. दिल से निकली हर एक कविता का अलग अहसास होता है ...जो दिल को ही चीर देता है

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  4. बचपन कभी नहीं जाता सर ,,हमारे भीतर छुप कर बैठा रहता है ....धन्यवाद

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