मंगलवार, 5 जनवरी 2016

सामाजिक कुप्रथा..

भारतीय समाज में व्याप्त कुप्रथाएं.....
एक कड़वी सच्चाई....

धिक्कार है ऐसे हिंदुओं पर भी जो विवाह के नाम पर अभी भी अपने लड़कों की बोली लगाते हैं,रीति रिवाज और परम्परा के नाम पर लड़की के पिता का पूरी तरह दोहन करते हैं बरिक्षा में 50,000  तिलक में मोटरसाइकल और दो लाख नकद लड़के के पिता को इस बात से कोई लेना देना नहीं कि विवाह के बाद बाँकी का परिवार कर्ज अदा करते हुए अपना जीवन कैसे जियेगा और इतना सब करने के बाद भी ससुराल में लड़की के ऊपर अत्याचार ....वाह रे हिंदू समाज.....
एक बात और कहना चाहता हूँ...
बेटी के विवाह में व्यवहार लिखाने की परम्परा है......बड़ी नायाब परम्परा है....जिस इंसान ने अच्छी तरह सोंच समझ कर वर्षों पहले से बेटी के विवाह हेतु योजना बना रक्खी है लाखों रुपये चोरी और भृष्टाचार से कमा कर बचा रक्खा है उसका इस दस बीस या पचास हजार रुपये का व्यवहार आ जाने से क्या भला हो जाएगा...मेरी समझ में नही आता...जब कि आज के समय में एक खाने की थाली पाँच सौ रुपये से कम की मिलना मुश्किल ही नहीं असम्भव है....
ऊपर से तुर्रा ये कि यदि कोई जानपहचान वाला अस्पताल में भर्ती हो जाय तो सब उसको देखने जाने लगते हैं जैसे इस दुनियाँ में उस रोगी व्यक्ति का उनसे बड़ा अन्य कोई हितैषी ही ना हो..किंतु हमदर्दी दिखाने का ये तरीका इतना विभत्स है कि शब्द भी सामर्थ्य खो देते हैं कुछ भी विचार देने में.....कुछ क्षण के लिये सोंचिये एक व्यक्ति अस्पताल में भर्ती है...
बेहोश है और उसके ग्लूकोज़ चढ़ रहा है ऑक्सीजन की नली पेशाब की नली और लैट्रीन की थैली लगी है...एक मित्र उस मरीज को देखने पहुँचते हैं एक दर्जन केले के साथ अब बंदा बेहोश पड़ा है पानी की एक बूँद भी मना है फिर भी केले! या मौसमी का जूस ...पत्नी उस मित्र को पहचानती नहीं जो पहचानता है वो बेहोश पड़ा है....फिर भी महाशय हाँथ जोड़ कर बोलते है भाभी जी किसी सहायता की जरूरत हो तो संकोच मत करियेगा.... हद है जहाँ लोग जानपहचान के लोगो से संकोच करते हों फिर भला किसी अनजान से संकोच कैसे ना होगा!
एक रिश्तेदार मरीज को देखने पहुँचते हैं बैठते हैं...भाभी जी चाय मँगाती हैं..फिर बातचीत का सिलसिला शुरू होता है...ऐसी बाते कि डॉक्टर सुन ले तो अपनी डिग्रियाँ फाड़ डाले..... प्रश्न-कितने टॉके लगे हैं...उत्तर- तेरह...
ओहह..ये तो कुछ भी नही..हमारी बुआ सास का ऑपरेशन हुआ था तो 27 टॉके लगे थे..प्र0और ये थैली कैसी लगी है उ0 ये पॉटी के लिये है......इतना सुनते ही जेब मे रक्खा रुमाल तुरंत नाक पर आ जाता है...लोग दनादन देखने जाते रहते हैं जैसे उनके पास कोई चमत्कारी शक्ति हो कि उनके देखते ही मरीज अपना दर्द भूल जायेगा या भला चंगा हो जायेगा...देखने जाने वालों को ये खबर भी नही होती कि वास्तव में वो जिसे देखने जा रहे है उसका कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं...सड़को पर कितनी सफाई स्वच्छता रहती है ये किसी से छिपा नही है और उन्ही सड़को से चल कर चप्पल जूतों में हजारों विषैले तत्व चिपटाए हुए जब कोई किसी मरीज को देखने जाता है....तो शायद वो उस मरीज को इस नश्वर संसार से विदा करने का उपक्रम ही करने जाता है....
होना तो ये चाहिये कि विवाह में व्यव्हार चाहे ना दिया जाय लेकिन किसी के बीमार पड़ने पर उसके परिवार की सहायता अवश्य की जाय...क्योकि विवाह पूर्वनियोजित होता है लेकिन बीमारी अचानक आती है....बाते और भी हैं...आवश्यक नहीं मेरे विचारों से सहमत ही हुआ जाय... और यदि मेरे विचार को पढ़ कर किसी की भावनायें आहत होती हैं....तो मैं विनम्रता पूर्वक क्षमा प्रार्थी हूँ..।
         लेखक.....  राजेन्द्र अवस्थी..

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