गुरुवार, 25 जून 2015

रीता बचपन

खेल खिलौने पढ़ना लिखना,
हँसना तक वो छोड़ चुका है,
सुबह से लेकर रात तलक,
बस काम से नाता जोड़ चुका है,

अब गाई चराई रमपलवा,
बापु सिधारेस स्वर्गलोक,
औ घरु मा माई करै सोकु,
पेटु का खाली भा गढ़वा,
अब गाई चराई रमपलवा,
है उमिर बरस बारा कै बसि,
नेकर ढीली लीन्हेस कसि,
नंगे पाँव जरैं तरवा,
अब गाई चराई रमपलवा,
गोरू ख्यातन मा घुसे जात,
लाठी लीन्हे नान्ह हाँथ,
लखेदि लिहिस भुरउ पड़वा,
अब गाई चराई रमपलवा,
जेठु घाम औ मुख मलिन,
दउरि रहा है गाँव गलिन,
स्वाचन मा खाय़ रहा हेलुवा,
अब गाई चराई रमपलवा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए अग्रिम धन्यवाद....

आपके द्वारा की गई,प्रशंसा या आलोचना मुझे और कुछ अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करती है,इस लिए आपके द्वारा की गई प्रशंसा को मै सम्मान देता हूँ,
और आपके द्वारा की गई आलोचनाओं को शिरोधार्य करते हुए, मै मस्तिष्क में संजोता हूँ.....