शनिवार, 10 नवंबर 2012

भाग्य

भाग्य पकड़ कर बैठा था मै,
कर्म थकन से चूर हो गया,
श्रम को रोते देख सडक पर,
हँसने को मजबूर हो गया,
मैं मानव हूँ मै सब कुछ हूँ ,
कैसा ये गुरूर हो गया,
शायद सुख का नशा चढ़ा है,
इसीलिये मशहूर हो गया,
अपनो ने चाहा कुछ ऐसे,
नज़रों का मै नूर हो गया,
है बला कौन सी प्रेम ना जानूं,
आशिक फिर भी जरूर हो गया,
लगी लगन कुछ ऐसी तुमसे,
लिखने का कुछ शउर हो गया,
पीने का मन नही आज पर,
शाम जाम का दौर हो गया,
कली कली में अक्स तुम्हारा,
सारा आलम हूर हो गया,
मै क्या जानूँ तुम कैसी हो,
मिलन का सपना चूर हो गया।

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