गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

नादाँ प्रेम.

                                             शब्द नही है प्यार है मेरा,शब्दों का संसार है मेरा,
                                            अगणित बातें कहने को(कलम)ब्लॉग ही अब आधार है मेरा.

          अपने देश की गंवई भाषा में  लिखने का प्रयास किया है, मेरे एक मित्र ने इसको बैसवारी भाषा माना है ,
          मेरा भाषा ज्ञान विस्तृत नहीं है अतः मुझे उनकी बात स्वीकार करनी पड़ी....

  नादाँ प्रेम..



पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,

जब चुवै लाग यौवन हमार औ आंखी मारब जान लीन्ह,
तब अपने घर के बगल की लइकी पर हम शर संधान कीन्ह,
अब नींद न आवै रात भर सब खाब पियब दूभर होइगा,
सब जने कहै का नजर लागि,लरिका हमार दूबर होइगा,
पर असर न भा कौनो हम पर, हम जोस मा खूब ऊधान रहेन,

पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,

इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,
हमहूँ ओहिका तड़े रही वह जब फैलावे कपड़ा,
डांटे बहिनी खूब हमै कि करिहो तुम कौनौ लफडा,
काहे से वहिका बाप रहै खुब पहलवान मोटा तगड़ा,
गाँव भरे मा भाइऊ करै यदा कदा सब ते झगडा,
न सुना एकु हम कौनो की, बस आंखी मूंदे लगे रहेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,


जब ह्रदय मा हमरे प्रीत जगी,
तब बातचीत खुब होय लगी,
फिर हूक ह्रदय माँ उठे लाग,
चिट्ठी पर चिट्ठी छपे लाग,
डारा सब कांपी अपन फारि, पेन रोजु नवा हम लेत रहेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,


श्रीमन देवदास ते शुरू कीन्ह,
औ ग़ालिब का हम गुरू कीन्ह,
मजनू रांझा का लई असीस,
फिरि प्रेम पत्र हम घोर पीन्ह,
शेर शेरनी लिखै मा तब, निसिवासर हम लगे रहेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,

संग्राम इश्क का होय लाग,
बतकही करै अब लोगबाग,
पईसओ हम कीन्ह खुबई खर्चा,
सब गाँव भरे मा अब भा चर्चा,
बेशर्मी चोला ओढ़ी के हम, सब जानत भए मठियात रहेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,


अब रहै लागि वा सजी-बजी,
जब देखै हम का लजी-लजी,
तो हमका लागै  हरी सब्जी,
हम काह करी अब कोऊ कहै,
शर्महया सब दीन्ह तजी,
वह पोत पाउडर बनी भोर,हम करिया काजरू बने रहेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,


हम प्रेम ग्रन्थ हीरो बनी गेन,
बदनामी कीच महा सनी गेन,
पर छ्वारा न याकौ मंतुर की,
खा लीन्ह कसम हम जन्तुर की,
बागी हमका सब लोग कहै, तबहूँ हम सबते तने रहेन,

पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,


जब छीछालेदर भए हमार,
शिव लिंग मा दैमारा कपार,
कुछु भला करौ तुम भोले अब,
टारौ सब विपदा देव तार,
जिनगी भर बमबम भोले, नाम तुम्हारौ गनत रहेन,



पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,

अब संकट हम पर भा भारी,
तब याद कीन्ह हम महतारी,
मूड धरा हम चरनन मा सब डारि दीन्ह लोटिया थारी,
फिकर कतौ न करौ अब लालु, यो अम्मा अपने मुख ते कहेन्,



पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,

मार दीन्ह हमहूँ छक्का,
अम्मा फिर ब्याह करेन पक्का,
लगा गाँव भरे का बड़ा धक्का,
रहिगे सब हक्का बक्का, त्रिपुरारी भोले कृपा करेन,


पहिले हम नादान रहेन,ससुर बड़े अनजान रहेन,
इश्क प्रेम का दाना हम लीलै मा सकुचात रहेन,

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ...
    उम्रे -दौराँ की ...गजब !!!आभार आपका

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    1. आपका हमारी बज्म में आना ,आभार जताना ..हमें निशब्द कर देता है .....:-)))

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  2. जबरदस्त!! वाह वाह!! आनन्द में झूम उठे....भाषा का बेहतरीन इस्तेमाल!!

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    उत्तर
    1. आदरणीय , आपने मेरा भय समाप्त कर दिया ,पहली बार इस भाषा का प्रयोग किया है अपनी कविता में ...आपका आनंद तो मेरे लिए परमानन्द बन गया है ,आभार आपका ..

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  3. उत्तर
    1. शिवांगी ,मुझे बहुत खुशी हुई कि तुम्हे न सिर्फ हिंदी से बल्कि अपनी गाँव की बोली से भी लगाव है ....

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