बढ़ जाता स्पंदन हिय का पास तुम्हारे आने से,
थमती धड़कन रुकती सांसे दूर तुम्हारे जाने से,
दीवानापन तो ऐसा के दिन में ख्वाब तुम्हारे है,
राते आँखों में कटती हैं यादों से हम हारे हैं,
कल्पित से लगते हैं पल जो साथ गुज़ारे हैं,
साथ नहीं हैं फिर भी लगता हम तो संग तुम्हारे हैं,
रोम रोम रोमान्चित होता आज भी जब हम मिलते है,
यादों की गनतरिया हम तुम दोनो मिल कर सिलते हैं,
बिलकुल तुम ना बदली हो आज भी हो वैसी की वैसी,
फागुन, सावन, चाट बताशे, औ चूड़ी कंगन के जैसी,
व्यक्त् करूँ मै नेह को कैसे अर्पित जीवन सारा है,
सुख दुख हँसना रोना सोना सब कुछ तुम पे वारा है....
.प्रियतमा....
बिलकुल तुम ना बदली हो आज भी हो वैसी की वैसी,
जवाब देंहटाएंफागुन, सावन, चाट बताशे, औ चूड़ी कंगन के जैसी,....................
बहुत बहुत बहुत सुंदर सुंदर सुंदर
बिलकुल तुम ना बदली हो आज भी हो वैसी की वैसी,
जवाब देंहटाएंफागुन, सावन, चाट बताशे, औ चूड़ी कंगन के जैसी,....................
बहुत बहुत बहुत सुंदर सुंदर सुंदर
आदरणीय डॉ.हीरालाल जी आपका ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ...
जवाब देंहटाएंभाई श्री श्री आशीष पाण्डे जी, "गनतरिया" एक प्रकार का बिछौना होता है जिसे घर की महिलाएं स्वकौशल द्वारा निर्मित करती हैं....सादर...
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