यूँ तो काम से फुर्सत मिलती नहीं और यदि मिलती भी है तो अब फुर्सत से रहने की चाह नहीं रह गई..छ्याशठवें गणतंत्र दिवस का अवकाश मेरे लिये घूमने का सुअवसर ले कर आया..
सवेरे से इंद्रदेव का सुंदर प्रस्तुतीकरण लगातार जारी था ...यात्रा के लिये हमने अपने बैग में बरसाती,टार्च,टूटने वाला छाता,एक गिलास और प्लेट साथ ही बिस्किट और नमकीन रख ली थी...
दस बजे से हम तैयार हो कर बैठे और पानी बंद होने का इंतजार कर रहे थे....भगवान की कृपा से ग्यारह बजे पानी बरसना बंद हुआ तो श्रीमती जी ने एहतियातन समझाया कि, हो सके तो आज का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया जाय क्योंकि सड़कों पर फिसलन होगी और हम जहाँ जा रहे थे वहाँ पता नहीं सड़के कैसी हों....लेकिन हम ना माने और बेटे से बाइक निकालने को कहा..खैर किसी तरह महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए यात्रा प्रारम्भ की.... ईधन टैंक फुल करा लिया और गूगल मैप के सहारे भीतरगाँव में स्थित गुप्तकालीन मंदिर की ओर चल पड़े. पानी बरसने के कारण जगह जगह गढ्ढों में जलभराव और सड़क पर कीचड़ का अनुपम सुयोग बाइक के साथ ही मेरे कपड़ों पर भी विचित्र चित्रकारी कर रहा था फिर भी ना जाने क्यों आज ये बुरा नहीं लग रहा था. गणतंत्र दिवस होने के कारण सड़कों पर अधिक भीड़ भी नहीं थी रमइपुर से मेरी मंजिल के लिये रास्ता बाँई ओर को घूम रहा था लेकिन अति आत्मविश्वास से लबरेज सोंचा कि हम सही रास्ते पर हैं और पत्नी जी की सलाह भी ठुकरा दी कि मैप में एक बार देख लो...इसका नतीजा ये हुआ कि हम रमईपुर से आगे बढ़ते चले गये और जब बिधनू पहुँचे तब पता चला कि हम पाँच किलोमीटर व्यर्थ में आगे आ गये हैं....कभी कभी आगे होना भी तकलीफ देता है... अभी तक दो जगह गूगलमैप देखना पड़ा था...बिधनू में एक होटल पर हल्का जलपान किया और वापस रमईपुर की ओर चल दिये....चार किलोमीटर चलने के बाद भीतरगाँव का रुख किया और मुख्य सड़क से करीब आठ किलोमीटर अंदर चलने के बाद भीतरगाँव के बाजार से होते हुए जैसे ही पहला मोड़ दाहिनी तरफ घूमे तो हम अवाक रह गये...
सातवी आठवीं शती का ये मंदिर वर्गाकार स्थान पर बना हुआ है। वर्ग के कोने, एक छोड़कर एक, इस प्रकार से बने हैं, और मध्य में 15 वर्ग फुट का एक गर्भगृह तथा उसके साथ एक 7 वर्ग फुट का मण्डप है। दोनों के बीच एक मार्ग है। गर्भगृह के ऊपर एक वेश्म है जिसका क्षेत्र नीचे के कक्ष से लगभग आधा है। 1850 ई. में ऊपरी भाग की छत बिजली गिरने से नष्ट हो गई थी। स्थूल दीवारों के बाह्य भाग पर आयताकार घेरों में सुन्दर मूर्तिकारी अंकन है। ये मूर्तियाँ पकी हुई मिट्टी की बनी हैं। मन्दिर में अनेक सुन्दर अलंकरणों का प्रदर्शन किया गया है।
किंतु इसके रखरखाव पर कोई विशेष ध्यान ना दिये जाने से आबादी के बीच मंदिर कहीं खो सा गया है...कभी कभी लोग पिकनिक मनाने के उद्येश्य से इसके पार्क में चले आते हैं.. ये तो गुप्तकालीन इष्टिका मंदिर का प्रसंग था..इस मंदिर का संरक्षक नियुक्त किये गये श्री साही जी से मालूम हुआ ग्राम बुजुर्ग बेहटा में स्थित भगवान जगन्नाथ जी के प्राचीन मंदिर के बारे में अब तो ह्रदय में जिज्ञासा हिलोरे लेने लगी और मन भगवान के दर्शनों के लिये व्याकुल हो उठा...लगभग एक घण्टे का सफर कर के हम भगवान जगन्नाथ जी के दरबार में थे..
बड़े अफसोस की बात है कि कानपुर में प्रति वर्ष भगवान जगन्नाथ जी मण्डल के द्वारा रथयात्रा का आयोजन किया जाता है...कितना बेहतर हो कि इस प्राचीन मंदिर के देखभाल की जिम्मेदारी जगन्नाथ जी मण्डल सम्हाल ले...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए अग्रिम धन्यवाद....
आपके द्वारा की गई,प्रशंसा या आलोचना मुझे और कुछ अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करती है,इस लिए आपके द्वारा की गई प्रशंसा को मै सम्मान देता हूँ,
और आपके द्वारा की गई आलोचनाओं को शिरोधार्य करते हुए, मै मस्तिष्क में संजोता हूँ.....