जीने में छुप छुप कर रोना कितना मुश्किल होता है,
खाली घर में तन्हा रहना कितना मुश्किल होता है,
इक छोटी सी चिड़िया ने तो आसमान बस देखा था,
उसे क्या मालुम ऊँचा उड़ना कितना मुश्किल होता है,
खुशबू फैल रही थी उसकी लेकिन थी नादान बहुत,
काँटो से कलियों का बचना कितना मुश्किल होता है,
अपने सब थे पर अपनापन दिखा नहीं किरदारों में,
गैर के आगे यारो झुकना कितना मुश्किल होता है,
गुजरी रात जलाया दीपक भोर तलक ना जल पाया,
उम्मीदो का यूँ मर जाना कितना मुश्किल होता है,
दूजी दुनियाँ से हमने आवाज सुनी जब बेटी की,
आँखों से आँसू मर जाना कितना मुश्किल होता है,
पता है हमको तुम्हे पता है मेरी सब हुशियारी का,
चुप रह कर भी 'राज' छुपाना कितना मुश्किल होता
राजेन्द्र अवस्थी.....