नीचे बहै वारि तापे कच्छप सवार है,
कच्छप की पीठ.पै सवार शेषकारा है
शेष पै सवार अवनि भार स्यों दबाय रह्यो,
अवनि पै सवार शुंभ पर्वत विस्तारा है,
शुंभ पै सवार शंभु,शंभु पै सवार जटा,
जटा पै सवार भागीरथी जी की धारा है।
भले ना हो पास मेरे शब्दों का खजाना, ना ही गा सकूँ मै प्रसंशा के गीत, सरलता मेरे साथ, स्मृति मेरी अकेली है, मेरी कलम मेरी सच्चाई बस यही मेरी सहेली है..
कच्छप लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
कच्छप लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सोमवार, 2 नवंबर 2015
भागीरथी महिमा
सदस्यता लें
संदेश (Atom)