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गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

हंसी पर रोती जिन्दगी....

युवा वर्ग के अंतर्मन की व्यथा को,अनिवार्य शिक्षित होने की कथा को,    लिपिबद्ध करने का छोटा सा प्रयास....


हंसी पर रोती जिन्दगी, ये कैसी समाज की दरिंदगी, बच्चो का खोता जा रहा है बचपन, हर किसी में ढूंढते है अपनापन, मै इसी तरह का कुछ लिखने वाला था, अंतर्मन में दुविधाओ को पाला  था, पर जिन्दगी रोते हुए भी हंसती है, समय की कसौटी पर हर एक को कसती है, और आंकड़ो के साथ अपनी हर बात प्रस्तुत करती है, मै भी कुछ आंकड़े आप के सामने ला रहा हूँ कृपया ध्यान दे,                          (  परीक्षाओ में फेल होने के मुख्य कारण ) सीधा जवाब है -:  १ वर्ष के ३६५ दिन होते है, रोज ८ घंटे सोने के यानि पूरे साल के १२२ दिन ३६५-१२२=२४३ दीपावली अन्य त्यौहार आदि तथा गर्मियों की छट्टियों के दिन-: ६१    २४३-६१=१८२ दिन, उसमे भी ५२ रविवार १८२-५२=१३० दिन, आकस्मिक और स्कूली त्यौहार के ४० और व्यक्तिगत १५ दिन-:   १३०-५५=७५ दिन खाने पीने नहाने के ३ घंटे के हिसाब से ४६ दिन-: ७५-४६=२९ दिन रोज के १ घंटे दोस्तों के उसके १५ दिन -: २९-१५=१४ दिन अब उसमे १० दिन तो बीमार रहते है-: १४-१०=४ दिन बचे परीक्षाओ के समय भी दूरदर्शन देखने के ३ दिन-: ४-३=१ दिन बचा मित्रो, एक साल में एक ही दिन तो जन्म दिन आता है, अब जन्म दिन में कौन पढ़ाई करे ?