मंगलवार, 18 नवंबर 2014

स्वार्थी

हमने कुछ नहीं किया तुम्हारे लिये,
हम तो अपने हाँथ के छालों को देखते रहे,
सहेजते रहे दर्द का एक एक कण,
जिससे मेरे साथ के लोग खुश रहे हर क्षण,
भावुकता का हास जारी रहा अंतस में,
संवेदनाएं पीछे छूटती रहीं हरदम,
हम खुशियों की चाहत में भागते रहे,
भीड़ में अकेले प्रकाश को छोड़ कर,
एकत्रित भी हुआ था बहुत कुछ सबके लिये,
उस "सब" में शायद मैं कभी फिट ना हो सका,
अभी भी नही हूँ और दौड़ रहा हूँ,
भीड़ में अकेले असहाय,
आज भी मै बता नही सकता,
मैने क्या किया तुम्हारे लिये,
वाकई मर्जी मेरी थी और आज भी है,
सर्वशक्तिमान की प्रेरणा निहित है,
कुछ भी होने में कुछ भी करने में,
समय ने माध्यम चुना मुझे,
चुना सबने समय समय पर,
मुझे स्वहितार्थ सप्रयोजन,
बस मैं बता नहीं सकता कि,
मैने क्या किया किसी के लिये,

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