सर झुकाये सड़क पर चलते हुए,
तलाश करती रहती नज़रें,
सड़क पर पड़ी बेतरतीब चीज़ें,
सहजने में लगे लोग एक एक पल,
लोगों की नज़रे मुझ पर हैं,
पूँछा किस पल की तलाश है,
मेरा जवाब मुस्कराहट में शामिल था,
मै चलता रहा तलाशते हुए,
लोग भी पीछे चलने लगे,
सभी तलाश रहे हैं शायद,
मैं चिल्लाया..ऐ लोगों तुम क्या तलाश रहे हो!!?
लोगों ने मेरी ओर देखा मुस्कराये,
नज़रें फिर तलाशने लगीं सभी की,
कोई कोई उठा लेता था झुक कर,
अव्यक्त और अनमोल चीज़ों को,
तलाश की पूर्णता का अर्थ जिंदगी नहीं,
पूर्णता तो मौत मे निहित है,
तलाशते रहते हैं हम जिंदगी-ज़िंदगी भर।
भले ना हो पास मेरे शब्दों का खजाना, ना ही गा सकूँ मै प्रसंशा के गीत, सरलता मेरे साथ, स्मृति मेरी अकेली है, मेरी कलम मेरी सच्चाई बस यही मेरी सहेली है..
मंगलवार, 18 नवंबर 2014
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