भक्त तुम्हारे हम भी हैं हे गणपति हम पर दया करो,
निर्धन हैं पर भक्त तो हैं हे गणपति हम पर दया करो,
विघ्नविनाशक तुम हो हे प्रभु विपति निवारणहार हो,
हम संकट में पड़े हुओं के तुम ही तारणहार हो,
आधी सड़क को प्रभु घेरे हो कैसा ये इंसाफ है,
धनी भगत के लिये प्रभू क्या सारे अवगुण माफ हैं,
मुझको लगता हे गणपति तुम डीजे धुन में मस्त हो,
निर्धन भक्त तुम्हारा चाहे सड़क पे कितना पस्त हो,
पेट तुम्हारा भरा हुआ है मोदक और मिठाई सेे,
हम तो भूखे फंसे जाम में भक्तों की निठुराई सें,
आरति के संग डिस्को भी होता तुम्हरे दरबार में,
चूहा भी है पूँछ पटकता मिल भक्तो के प्यार में,
वारे न्यारे लाखों के पूजा में रोज ही होते हैं,
पर पंण्डाल के बाहर बच्चे भूँखे पेट ही सोते हैं,
हे प्रभु कुछ तो दया करो क्या कलियुग में सब भूल गये,
रंग रंगीली रास रचा मस्ती का झूला झूल गये,
बने मदारी डगर डगर पर प्रभु मंदिर में अच्छे थे,
सिद्धिविनायक लम्बोदर दरबार तुम्हारे सच्चे थे,
अब तो बैठे हो भगवन तुम चौराहों और नुक्कड़ पे,
पेट में चूहे कूद रहे है दया करो मुझ भुख्खड़ पे,
सुलझा दो ये जाम डगर का करते तुम उपकार हो,
हे जग वंदन पार्वती नंदन तुम ही पालनहार हो,
नाच नचा लो ग्यारह दिन फिर होगा विसर्जन धूम से,
परेशान सब राही होंगे हल्ला गुल्ला बूम से।
भले ना हो पास मेरे शब्दों का खजाना, ना ही गा सकूँ मै प्रसंशा के गीत, सरलता मेरे साथ, स्मृति मेरी अकेली है, मेरी कलम मेरी सच्चाई बस यही मेरी सहेली है..
गुरुवार, 28 अगस्त 2014
हे गणपति महराज
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