भले ना हो पास मेरे शब्दों का खजाना, ना ही गा सकूँ मै प्रसंशा के गीत, सरलता मेरे साथ, स्मृति मेरी अकेली है, मेरी कलम मेरी सच्चाई बस यही मेरी सहेली है..
रविवार, 8 जून 2014
दिल की बात-1.
देश में बलात्कार की दुर्घटनायें दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही हैं...
महिला हित के लिये तमाम नियम कानून बनाये गये किंतु
इन कानूनों की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं...रोज कहीं ना कहीं बलात्कार एवं हत्या की दुर्घटनायें घट रही हैं...और प्रशासन के लोग सुशासन के नाम पर नाम मात्र का मुआवजा दे कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। बेहतर हो कानून समाप्त कर के प्रत्येक अपराध के लिये पीडित को मुआवजा देने की परम्परा प्रारम्भ कर दी जाय..
जैसे बलात्कार हत्या के लिये पाँच लाख..
सिर्फ बलात्कार के लिये चार लाख....
डकैती के लिये तीन लाख...
चोरी के लिये दो लाख....
राहजनी के लिये एक लाख...
कम से कम प्रशासन के लोगों की उलझन तो कम होगी और वो अपना समय अन्य विकास कार्य में दे सकेंगे..
कुछ लोग इस मुआवजा परम्परा का फायदा उठा ही रहे हैं..
जैसे बीते कुछ वर्षों में किसानों में आत्महत्या करने की होड़ सी लगी थी...पता चला किसान कर्ज अदा ना कर पाने के कारण आत्महत्या कर रहे हैं...आत्महत्या कर लेने के बाद कर्ज भी अदा परिवार भी खुशहाल...ये ऐसे कि कर्ज पचास हजार रुपये और आत्महत्या के बाद परिवार को मिलने वाला मुआवजा दो लाख रुपये...आत्महत्या करो मुआवजा लो सब खुश...कहीं यही तो नही हो रहा? क्यों कि जब देश में गरीबी के कारण माँ अपने जिगर के टुकड़े को दो जून की रोटी के लिये बेंच सकती है तो फिर मुआवजा पाने के लिये गरीबी कम करने के लिये किसी भी स्तर तक जाया जा सकता है...
क्रूरता और अत्याचार की इंतहा है ये कि, पैसों की खातिर दहेज के नाम पर किसी बेटी को जिंदा जला के मार डालना फिर भी हमारे सभ्य समाज में कोई हलचल नहीं होती. महिलाओं की साक्षरता का प्रतिशत बढने के अलावा महिलायें आज प्रत्येक क्षेत्र में कर्मठता से पुरुषों के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहीं हैं...फिर भी बड़े अफसोस की बात है कि आज देश में एक भी महिला संगठन इतना सशक्त नहीं है जो महिलाओं पर हो रहे अत्याचार को पुरजोर तरीके से उठा सकें... महिलाओं पर पुरुष मानसिकता का कहर यहीं पर नहीं रुका वीभत्सता और क्रूरता की सारी सीमायें तोड़ते हुए "कन्या भ्रूण" की हत्या करने का साहस स्त्री पीड़न का चर्मोत्कर्ष कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति ना होगी.
मेरे विचार से महिलाओं पर हो रहे अत्याचार और उत्पीड़न को कम किया जा सकता है..
महिलाओ को आर्थिक रूप से सशक्त बना कर और
बालिकाओं के लिये नर्सरी स्कूल से ही जूडो कराटे का प्रशिक्षण अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये...हाँला कि आज महिलाओं के रूप से मजबूत होन में इजाफा हुआ है किंतु शारिरिक शक्ति में वो आज भी परुषों का मुकाबला करने में अक्षम हैं निश्चित ही जूडो कराटे को बालिककाओं के लिये अनिवार्य शिक्षा बना कर महिलाओं को शारिरिक एवं मानसिक स्तर पर पुरुषों के समकक्ष लाया जा सकता है इससे लड़कियों में आत्मविश्वास बढ़ेगा और हमारी आने वाली पुरुष पीढ़ी अवश्य ही सहनशील तथा विनम्र हो जायेगी इसमें कोई संदेह नहीं है.
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