सुर भी सूखे हो चले सहमे से हैं राग,
आसमान सेे आजकल बरस रही है आग।
कलम घिसाई क्या करें सूखी स्याही साथ,
बर्फ अंगीठी में भर के ताप रहे हैं हाँथ..
फसल उगी दीवार की,ह्रदय नेह के बींच,
वाणी निर्मल कीजिये,प्रेम की रेखा खींच,
दीवारें जब से बनी,रिश्तों में तलवार,
प्रेम पिपासा मर चुकी,भटक रहा संसार
बैठे हैं सब लालची,मुँह में लार दबाय,
स्वारथ है इनमें भरा,चाहे देश बिकाय,
राजनीति के दाँव में,पड़ते पांसे रोज,
नीलामी हो देश की,ऐसी करते खोज,
भारत देश महान है,ऐसा कहते लोग,
भृष्टाचारी पाप का,चिपका इसके रोग,
ऋषि मुनियों के देश में,मचता हाहाकार,
प्रवचन देते चोर अब,धर्म बना व्यापार,
अपनी गठरी हो भरी,देश भाड़ में जाय,
राजनीति के खेल मा,कुर्सी रोज बिकाय,
ह्रदय विराजे ईर्ष्या,रोगी काया होय,
अपना तन जर्जर करे,जीवन भर वो रोय,
अहंकार ईर्ष्या बुरी,बुरा मोह मद लोभ,
विष बेली यह ज्यों बढै,व्यापै मन में छोभ,
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