तुमको पास ना देख दूरी का अहसास हुआ,
भले ही ह्रदय मे रुधिर की तरह उपस्थित हो,
पर श्वेत कणिकाएँ कुछ कम हो चली हैं,
यादों का सिलसिला श्वांस की तरह हो गया है,
हाँ जब बिजली नहीं आती,
तब तुम्हारे पास ना होने का अहसास दम घोटता हुआ सा लगता है,
अधेरे मे तुम नज़र आने लगती हो कल्पनाओं मे,
और मै ढ़ेर सारी बातें कर जाता हूँ तुमसे,
वास्तव मे मुझे पता होता है कि तुम नही हो,
अंधेरा कर गई रोशनी की तरह,
लेकिन तुम्हारी अंधेरे की सौगात मुझे पसंद है,
मुझे पता है ये भी कि जब तुम आओगी तो रोशनी आयेगी मेरे कमरे में,
जब तुम आओगी तो ज़मीन आवाज़ देगी, तुम्हारे आने की,
जब तुम आओगी तो चंदन की महक भी आयेगी तुम्हारे साथ,
जब तुम आओगी तो मेरा जीवन भी अस्तित्व मे आयेगा,
अरे..अस्तित्व हीन जीवन!!!!!!!!!
क्या गज़ब का परिहास है,
चलो कुछ तो है परिहास ही सही,
पर है तो सही जीवन बिना अस्तित्व के भी,
क्यों कि,मेरा अस्तित्व तो तुम्ही हो,
क्यों कि, मेरा अस्तित्व तो तुम्ही हो.....
राजेंद्र अवस्थी (कांड )
बहुत ही सुन्दर रचना |
जवाब देंहटाएंwww.utkarshita.blogspot.com
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समय मिलते ही अवश्य आऊंगा ...धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर है!
जवाब देंहटाएंआभार सर जी .....
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