करती रात विश्वासघात,
नित कर देती नव प्रभात,
विचार रेत सा झर जाते है,
दिल कतरा कतरा कर जाते है,
कुण्ठित मन के सारे कोने,
विष कणिका से भर जाते है,
लगता नही सुखद अब मुझको,
तेरा हर एकाकी साथ,
करती रात विश्वास घात,
कर देती नित नव प्रभात,
सूना तनमन खाली सा,
ह्रदय बना है जाली सा,
प्यार की बूदें छन्न से हो,
उड़ जाती आग की लाली सा,
रह जाती है पास हमारे,
ठोकर खाने वाली बात,
करती रात विश्वास घात,
कर देती नित नव प्रभात,
प्रेम रात में रत होता है,
तुमसे मोह विकट होता है,
सुर्ख लाल भानु मुखमंडल,
दीप्त प्रतीत द्रश्य होता है,
लहराता जब भोर का परचम,
लगता जैसे ह्रदय घात,
करती रात विश्वास घात,
कर देती नित नव प्रभात,
सही कहा
जवाब देंहटाएंरात ने क्या-क्या ख्वाब दिखाए ,रंग भरे सौ बाग दिखाए
आँख खुली तो सपने टूटे रह गए गम के काले साये
वाह राजेश भाई, आपने दो ही पंक्तियों मे कविता का सार कह दिया...शानदार।
जवाब देंहटाएंक्या भाव हैं। क्या बात है!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर ...आपकी सराहना मेरे लिए विशेष प्रेरणादायक है ...
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