भावुकता के साथ मार्मिकता का संगम, हम कभी कभी करते है ह्रदयंगम,
वही दिवस वही अवसर फिर से आया है,आज हर् अपना अपने से पराया है,
कोई नहीं कहता कि कोई समझे हमको,
क्योंकि सबको है मालूम हर् पल साथ सिर्फ अपना ही साया है .
गंभीरता के साथ पढ़ने का अवसर प्रदान करती हुई रचना भावुकता के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ.आप सभी का दिशा निर्देश एवं मार्गदर्शन मेरे लिए महत्वपूर्ण है ..............
मेरी प्यारी सहचरी, मेरे मित्रो की स्वप्न परी,
बिना तुम्हारे दिल उदास रहता है,
जब तुम साथ होती हो दिन ख़ास रहता है,
तुम तो पढी लिखी हो,
अनगिनत बार ख्वाबों में दिखी हो,
मेरा ये पत्र पढ़ लेना,
बाद में चाहे जितना लड़ लेना,
मुझे याद आता है बचपन का वो प्रसंग,
जब निसंकोच घूमती थी तुम मेरे संग,
और खा जाती थी मेरे कटोरे का सारा खाना,
मालिक की फटकार फिर मेरे घर मत आना,
तुम चुपचाप सब कुछ सह जाती थी,
बंद होठो से बहुत कुछ कह जाती थी,
पर अब वो सब कुछ इतिहास हो गया,
मै और मेरा जूठा कटोरा तुम्हारे लिए ख़ास हो गया,
पर अपने गले में डाले वफादारी का फंदा,
ना उठा सका मै इन्साफ का डंडा,
सारी जिन्दगी मै जानवर बना रहा,
इंसान की इंसानियत को सहता रहा,
पर अब सताने लगा है बुढापा,
खो देता हू कभी कभी अपना आपा,
फिर बेतरह मुझे मारा जाता है,
ना जाने किस जन्म का मेरा तुम्हारा नाता है,
आंसुओ के धुंधलके में फिर तुम दिख जाती हो,
उसी तरह बंद होठो से ना जाने क्या क्या कह जाती हो,
मेरा मन समझ नहीं पाता है,
बस इतना जानता हूँ जरुर मेरा तुम्हारा किसी ना किसी जन्म का नाता है,
जरूर मेरा तुम्हारा.....................?????
आप सबका बुलबुल
राजेंद्र अवस्थी {कांड}
वही दिवस वही अवसर फिर से आया है,आज हर् अपना अपने से पराया है,
कोई नहीं कहता कि कोई समझे हमको,
क्योंकि सबको है मालूम हर् पल साथ सिर्फ अपना ही साया है .
गंभीरता के साथ पढ़ने का अवसर प्रदान करती हुई रचना भावुकता के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ.आप सभी का दिशा निर्देश एवं मार्गदर्शन मेरे लिए महत्वपूर्ण है ..............
मेरी प्यारी सहचरी, मेरे मित्रो की स्वप्न परी,
बिना तुम्हारे दिल उदास रहता है,
जब तुम साथ होती हो दिन ख़ास रहता है,
तुम तो पढी लिखी हो,
अनगिनत बार ख्वाबों में दिखी हो,
मेरा ये पत्र पढ़ लेना,
बाद में चाहे जितना लड़ लेना,
मुझे याद आता है बचपन का वो प्रसंग,
जब निसंकोच घूमती थी तुम मेरे संग,
और खा जाती थी मेरे कटोरे का सारा खाना,
मालिक की फटकार फिर मेरे घर मत आना,
तुम चुपचाप सब कुछ सह जाती थी,
बंद होठो से बहुत कुछ कह जाती थी,
पर अब वो सब कुछ इतिहास हो गया,
मै और मेरा जूठा कटोरा तुम्हारे लिए ख़ास हो गया,
पर अपने गले में डाले वफादारी का फंदा,
ना उठा सका मै इन्साफ का डंडा,
सारी जिन्दगी मै जानवर बना रहा,
इंसान की इंसानियत को सहता रहा,
पर अब सताने लगा है बुढापा,
खो देता हू कभी कभी अपना आपा,
फिर बेतरह मुझे मारा जाता है,
ना जाने किस जन्म का मेरा तुम्हारा नाता है,
आंसुओ के धुंधलके में फिर तुम दिख जाती हो,
उसी तरह बंद होठो से ना जाने क्या क्या कह जाती हो,
मेरा मन समझ नहीं पाता है,
बस इतना जानता हूँ जरुर मेरा तुम्हारा किसी ना किसी जन्म का नाता है,
जरूर मेरा तुम्हारा.....................?????
आप सबका बुलबुल
राजेंद्र अवस्थी {कांड}
भई वाह क्या प्रेम पत्र है मजा आ गया पढ़कर...
जवाब देंहटाएंक्या बात है जी..
जवाब देंहटाएंवीना जी, समीर जी आप का बहुत धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंakhir kutto ki bhi jindagi hai....vo bhi to love letter de sakte hai...
जवाब देंहटाएंहाँ शिवांगी जी, सही कहा आपने...।
जवाब देंहटाएं