आम आदमी की जिंदगी, राह की धूल मिट्टी गंदगी,
दुनियाँ की दुत्कार, रहीसों की बंदगी.......
सामान्य इंसान,
जीवन भर नहीं बना पता अपनी पहचान,
दुनियाँ की दुत्कार, रहीसों की बंदगी.......
सामान्य इंसान,
जीवन भर नहीं बना पता अपनी पहचान,
रोटी,कपडा समाज की रीत,
ढूंढते उम्र सारी जाती है बीत,
सारे बाल स्याह से हो जाते है सफ़ेद,
फिर भी नहीं भर पाते जरूरतों के छेद,
कुछ न कुछ रह जाता है बांकी,
मरते दम तक फिकर रहती है माँ की,
ग्रीष्म की लपट शिशिर की सिहरन,
गृह में निपट अकेली विरहन,
रस्ता देखते हैं सब बच्चे,
आँखों में है अजब उदासी,
कर दे कोई दया जरा सी,
मेहनतकश की खाली मेहनत,
सूखी रोटी लगती नेमत,
सुबह अकेली शाम है भारी,
सफर जिंदगी का है जारी,
गाली सुनते कभी ना थकता,
फटे चीथड़ों से तन ढँकता,
जब मई जून का जले महीना,
पानी जैसे बहे पसीना,
बासी रोटी नमक और प्याज,
मिल कर पेट भरो सब आज,
सर्दी जब आती है भाई,
सिलनी पड़ती फटी रजाई,
गंतरिया भी गीली लगती,
भावनाएँ सब सीली लगती,
चारपाई है टूटी फूटी,
बान बिनाई झूठी झूठी,
कड़ी ठण्ड भी सहते रहते,
मजबूरी सब किससे कहते,
कभी कभी तो ऐसा होता,
बिना दूध के बच्चा सोता,
पानी जैसे बहे पसीना,
बासी रोटी नमक और प्याज,
मिल कर पेट भरो सब आज,
सर्दी जब आती है भाई,
सिलनी पड़ती फटी रजाई,
गंतरिया भी गीली लगती,
भावनाएँ सब सीली लगती,
चारपाई है टूटी फूटी,
बान बिनाई झूठी झूठी,
कड़ी ठण्ड भी सहते रहते,
मजबूरी सब किससे कहते,
कभी कभी तो ऐसा होता,
बिना दूध के बच्चा सोता,
ईश्वर से भी नहीं बंदगी,
जानवर जैसी हुई जिंदगी,
नाम के बस हम है इंसान,
जाने कहाँ छुपे भगवान्, जाने कहाँ छुपे भगवान् ............
जानवर जैसी हुई जिंदगी,
नाम के बस हम है इंसान,
जाने कहाँ छुपे भगवान्, जाने कहाँ छुपे भगवान् ............
भावनाएं सब सीली लगतीं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर पंक्ति....बहुत सुंदर भाव...
आम आदमी की जिंदगी का दर्द बड़ी ही खूबसूरती से बयां किया है आपने..........
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