मंगलवार, 8 मार्च 2011

गीत.....

किसी से प्यार करना या किसी से प्यार होना दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,
प्यार की समीक्षा नहीं की जा सकती. प्यार का कोई पैमाना नहीं होता, प्यार की कोई तौल नहीं होती, प्यार का कोई मोल नहीं होता, प्यार कम या ज्यादा नहीं होता, प्यार केवल प्यार होता.है.
हर् व्यक्ति के जीवन में प्यार होता ही है,
आज इसी प्यार से प्रेरित हो कर बड़े प्यार से पहली बार एक प्यारा सा गीत लिखने का प्रयास किया है.......

शर्मा कर देखना तेरा,फिर झुका लेना निगाहों का,
अदा तेरी ये कत्लेआम कर देती है आहों का,
तेरी चितवन को कैसे मै नज़र अंदाज़ कर जाऊँ,
चली आओ मेरे दिल में सहारा लेलो बाँहों का,      चली आओ मेरे.........


 प्यार मुझको तो तुमसे है इश्क तुमको भी कम नहीं,
      कब से तेरी आंख गीली है मेरी आंख नम नहीं,
      खता मेरी ही है शायद तुम्हारा दोष कुछ नहीं,
       अब चर्चा आम होता है हमारी ही वफाओं का,     चली आओ मेरे...........


ज़माना याद रक्खेगा हमारी इस कहानी को,
समय बर्बाद कर देगा तुम्हारी सब जवानी को,
बांकी बस निशाँ रह जाएगा इन मस्त हवाओं का,
मेरी रगबत है बस इतनी कोई रहबर हो बागों का.    चली आओ मेरे...........


तुम्हारा अक्स दिखता है मुझे फूलों में कलियों में,
हवाएं सर्द चुभती है बदन में तेरी गलियों में,
झलक दिख जाए बस तेरी यही उम्मीद रखता हूँ,
नज़र भर देख लूँ तुमको नज़ारा हो नजारों का...       चली आओ मेरे..........



    

2 टिप्‍पणियां:

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