होली रंगों का उल्लास का और प्रेम का त्यौहार है.
छोटे "बच्चों" से ले कर "वयोवृद्ध", सभी पूर्ण "उल्लास" के साथ अपने "उत्साह" को प्रदर्शित करते हुए एक दूसरे को रंग और अबीर लगा कर "प्रसन्नता" पूर्वक मनाते हैं,
बहुत सारे लेखकों,कवियों, और विद्वानों ने अपनी, अपनी शैली में शब्दों के द्वारा खूब होली खेली है.
मैंने भी प्रयास किया है...
मैंने साली से खेला जो रंग, तो घर में बीबी से हो गयी जंग, पिचक्का टूट गया..........................
उनके क्रोध की सीमा टूट गयी, और पत्नी हमसे रूठ गयी,
मैंने प्यार से पकड़ा जो हाँथ, उन्होंने हुसर के मारी लात,
पिचक्का टूट गया...........................
हमने प्रेम में वादे कर लिए, कान भी मैंने पकड़ लिए,
पर धन्य हो औरत जात, गुजर गई बैठे सारी रात,
पिचक्का टूट गया..........................
स्वाभिमान भी अपना मार गए, सब तरह से कह के हार गए,
जब नहीं बनी कोई बात, दिखाई हमने भी औकात,
पिचक्का टूट गया........................
अब पत्नी से हम ऐंठ गए, और घर के बाहर बैठ गए,
तब बढ़ने लगी तकरार, बिगड़ गया होली का त्यौहार,
पिचक्का टूट गया.........................
सामान भी अपना बांध लिया, और बच्चो को तैयार किया,
जब करने लगी गृह त्याग, तो लागी हमरे ह्रदय में आग,
पिचक्का टूट गया.........................
मौसम में कुछ गर्मी थी, मेरे नेचर में अब नरमी थी,
मै जोड़ के बोला हाँथ, प्रिये न छोडो मेरा साथ,
पिचक्का टूट गया.......................
मुस्कान उन्हें अति मंद हुई, और प्यार से आँखे बंद हुई,
जब टूटा भ्रम का जाल, तो बजने लगी प्रेम की ताल,
पिचक्का टूट गया...................
आपका अपना बुलबुल
राजेंद्र अवस्थी (कांड)
छोटे "बच्चों" से ले कर "वयोवृद्ध", सभी पूर्ण "उल्लास" के साथ अपने "उत्साह" को प्रदर्शित करते हुए एक दूसरे को रंग और अबीर लगा कर "प्रसन्नता" पूर्वक मनाते हैं,
बहुत सारे लेखकों,कवियों, और विद्वानों ने अपनी, अपनी शैली में शब्दों के द्वारा खूब होली खेली है.
मैंने भी प्रयास किया है...
उनके क्रोध की सीमा टूट गयी, और पत्नी हमसे रूठ गयी,
मैंने प्यार से पकड़ा जो हाँथ, उन्होंने हुसर के मारी लात,
पिचक्का टूट गया...........................
हमने प्रेम में वादे कर लिए, कान भी मैंने पकड़ लिए,
पर धन्य हो औरत जात, गुजर गई बैठे सारी रात,
पिचक्का टूट गया..........................
जब नहीं बनी कोई बात, दिखाई हमने भी औकात,
पिचक्का टूट गया........................
अब पत्नी से हम ऐंठ गए, और घर के बाहर बैठ गए,
तब बढ़ने लगी तकरार, बिगड़ गया होली का त्यौहार,
पिचक्का टूट गया.........................
जब करने लगी गृह त्याग, तो लागी हमरे ह्रदय में आग,
पिचक्का टूट गया.........................
मै जोड़ के बोला हाँथ, प्रिये न छोडो मेरा साथ,
पिचक्का टूट गया.......................
जब टूटा भ्रम का जाल, तो बजने लगी प्रेम की ताल,
पिचक्का टूट गया...................
आपका अपना बुलबुल
राजेंद्र अवस्थी (कांड)
बहुत खूब....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा पढ़कर...साली जी अक्सर ऐसी आफत ले आती हैं...
धन्यवाद वीणा जी.....
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