"कुछ धीर के साथ" "कुछ नीर के साथ" "ह्रदय में गूंजी पीर के साथ" अपनी नादान,मासूम,स्नेहिल अर्धांगिनी को समर्पित करता हूँ ये रचना......
मै वाचाल समंदर सा तुम
निर्मल धार सी बहती हो,
ह्रदय का संबल तुम ही हो,
जीवन आलंबन तुम ही हो,
तुम स्नेह की कोमल डोर प्रिये,
प्रेम पाश प्रतिबद्ध किये,
साथ मेरे हो कर भी तुम न,
जाने क्या क्या सहती हो, मै वाचाल समंदर सा तुम निर्मल.....
सहज मेरी मुस्कान हो तुम,
अभिमान भी तुम स्वाभिमान भी तुम,
तुम कंठ कोकिला सुरभित हो,
मै दुनिया के आयाम में गुम,
और मेरे कागा स्वर को तुम,
भँवरे की गुन गुन कहती हो, मै वाचाल समंदर सा तुम निर्मल.....
न जाने कितने वसंत प्रिये,
तेरे पतझड़ जैसे गुजरे है,
टूटे स्वप्न कई जब हम,
खुद दिए वचन से मुकरे हैं,
पर सुख में दुःख में साथ मेरे,
हर हाल में खुश तुम रहतीहो, मै वाचाल समंदर सा तुम निर्मल.....
जब स्मृति पृष्ठ पलटता हूँ,
नेत्र नीर टपकाते है,
टेढ़े मेढे अनगढ़ से,
चित्र कई बन जाते है,
तब हूक ह्रदय में होती है,
तुम मूक ही सबकुछ कहती हो, मै वाचाल समंदर सा तुम निर्मल.....
कैसा ये प्रतिदान प्रिये,
ये कैसा स्वाभिमान प्रिये,
सारे कष्टों से मुझको,
रखती हो अनजान प्रिये,
दुनियां के बिछाए खारों पर,
तुम बिना पादुका चलती हो. मै वाचाल समंदर सा तुम निर्मल.....
रजेन्द्र अवस्थी......
मै वाचाल समंदर सा तुम
निर्मल धार सी बहती हो,
ह्रदय का संबल तुम ही हो,
जीवन आलंबन तुम ही हो,
तुम स्नेह की कोमल डोर प्रिये,
प्रेम पाश प्रतिबद्ध किये,
साथ मेरे हो कर भी तुम न,
जाने क्या क्या सहती हो, मै वाचाल समंदर सा तुम निर्मल.....
सहज मेरी मुस्कान हो तुम,
अभिमान भी तुम स्वाभिमान भी तुम,
तुम कंठ कोकिला सुरभित हो,
मै दुनिया के आयाम में गुम,
और मेरे कागा स्वर को तुम,
भँवरे की गुन गुन कहती हो, मै वाचाल समंदर सा तुम निर्मल.....
न जाने कितने वसंत प्रिये,
तेरे पतझड़ जैसे गुजरे है,
टूटे स्वप्न कई जब हम,
खुद दिए वचन से मुकरे हैं,
पर सुख में दुःख में साथ मेरे,
हर हाल में खुश तुम रहतीहो, मै वाचाल समंदर सा तुम निर्मल.....
नेत्र नीर टपकाते है,
टेढ़े मेढे अनगढ़ से,
चित्र कई बन जाते है,
तब हूक ह्रदय में होती है,
तुम मूक ही सबकुछ कहती हो, मै वाचाल समंदर सा तुम निर्मल.....
कैसा ये प्रतिदान प्रिये,
ये कैसा स्वाभिमान प्रिये,
सारे कष्टों से मुझको,
रखती हो अनजान प्रिये,
दुनियां के बिछाए खारों पर,
तुम बिना पादुका चलती हो. मै वाचाल समंदर सा तुम निर्मल.....
रजेन्द्र अवस्थी......
रोचक !!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंसर रोचक!!!!!!!!
बहुत धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंशानदार....
जवाब देंहटाएंआभार .....
हटाएंbahut hi pyara likha hai
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शिवांगी ........
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