मेरी ये रचना जेल में बंद एक निरपराध कैदी की भावनाओं को व्यक्त करती है....
कहना पड़ता है अब मुझको,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
जो वीराने का देता परिचय,
हर पल जीवन करता जो क्षय,
सरल ह्रदय सुन्दर मृदुभाषी,
स्म्रति जिसकी नहीं है बासी,
व्यथित हो रहा है अब कन कन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
दुनिया की गति वही बनी है,
कल के निर्धन आज धनी हैं,
उसका प्रभु तो आज भी बहरा,
समय वहीँ का वहीँ है ठहरा,
नहीं है वश में अपना तन मन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
देखा कभी सुआ पिंजरे में,
जश्न नहीं होता उजड़े में,
रात अँधेरी दिया न बाती,
परछाई है कान में गाती,
नहीं है अब वो बाग वो उपवन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
योगी को लज्जा आ जाए,
जो जीवन इतना कठिन बिताए,
भावुकता अपनी किसे बताए,
हर पल घर की याद सताए,
मै तो करता स्वयं का तरपन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
वार्तालाप करे प्रति छाया,
ईश्वर क्यों इंसान बनाया,
मै तो हूँ इक ऐसा तोता,
बेगुनाह पिंजरे में होता,
खोज रहा सबमे अपनापन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
याद सभी की आती रहती,
निर्जनता बस यही है कहती,
तू ही नहीं अपनों से डरा सा,
सबर करो बस और जरा सा,
रोज ही करता स्वयं को अर्पन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
खुला आसमां तुझे दिखेगा,
वंश तेरा इतिहास लिखेगा,
नहीं हुई तेरी कुछ हानि,
समय करेगा खुद पर ग्लानि,
देख रहा हूँ दुःख का दर्पन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
जल्दी से तुम वापस आओ,
विरहा,फाग,भजन,सब गाओ,
बहना से "राखी" बंधवाओ,
ना रखना कोई इच्छा बांकी,
इतिश्री हो अब सारा कलपन,
वाह रे कितना सुखी वो जीवन....
वाह रे कितना सुखी वो जीवन...
कहना पड़ता है अब मुझको,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
हर पल जीवन करता जो क्षय,
सरल ह्रदय सुन्दर मृदुभाषी,
स्म्रति जिसकी नहीं है बासी,
व्यथित हो रहा है अब कन कन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
दुनिया की गति वही बनी है,
कल के निर्धन आज धनी हैं,
उसका प्रभु तो आज भी बहरा,
समय वहीँ का वहीँ है ठहरा,
नहीं है वश में अपना तन मन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
जश्न नहीं होता उजड़े में,
रात अँधेरी दिया न बाती,
परछाई है कान में गाती,
नहीं है अब वो बाग वो उपवन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
योगी को लज्जा आ जाए,
जो जीवन इतना कठिन बिताए,
भावुकता अपनी किसे बताए,
हर पल घर की याद सताए,
मै तो करता स्वयं का तरपन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
वार्तालाप करे प्रति छाया,
ईश्वर क्यों इंसान बनाया,
मै तो हूँ इक ऐसा तोता,
बेगुनाह पिंजरे में होता,
खोज रहा सबमे अपनापन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
याद सभी की आती रहती,
निर्जनता बस यही है कहती,
तू ही नहीं अपनों से डरा सा,
सबर करो बस और जरा सा,
रोज ही करता स्वयं को अर्पन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
खुला आसमां तुझे दिखेगा,
वंश तेरा इतिहास लिखेगा,
नहीं हुई तेरी कुछ हानि,
समय करेगा खुद पर ग्लानि,
देख रहा हूँ दुःख का दर्पन,
हाय कितना कठिन ये जीवन,
जल्दी से तुम वापस आओ,
विरहा,फाग,भजन,सब गाओ,
बहना से "राखी" बंधवाओ,
ना रखना कोई इच्छा बांकी,
इतिश्री हो अब सारा कलपन,
वाह रे कितना सुखी वो जीवन....
वाह रे कितना सुखी वो जीवन...
bahut hi achha likha hai....ek nirapradh kaidi ki bhavnao ko bahut hi khubsurti se vyakt kiya hai.....
जवाब देंहटाएंशिवांगी ,,अच्छा लगा तुम्हारी टिपण्णी पा कर..........
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