लेओ अब का कीन जाय.. अब तो मोदियौ कहि दीन्हेन कि, परिवारिक संस्कृति विकसित कीन जाय.
हा हा हा.......वइसे ई बात से कॉग्रेसी बड़े खुस भे होइहैं...कि आखिर आये वई रस्ता पर..लेकिन गज्जब की बात तौ या है कि, मोदी जी का कउनौ परिवार तो है नहीं. फिर !!
फिर उई मौका की बात कई दीन्हेन कि, भारत सोने केर चिरइय्या रहए मगर हम आसमान मा उड़ब छाँडि के जमीन पर आ गेन मुला अब हमरे पास फिर से उड़ै केर मौका है.
तो मौका तो बाद मा दीख जाई पहिले चउका द्याखौ..नहीं तो पारिवारिक संस्कृति विकसित करै के चक्कर मा ना घरु के होइहौ ना घाटु के..
कायदे से दीख जाय तो देस मा पारिवारिक संस्कृति विकसित करै का श्रेय कॉग्रेसै का मिलै क चही..
भाई हम तौ पूरे नम्बर दइ के महाकोढ़पती मान लीन है कॉग्रेस का..
काहे से कि दमाद,लरिका,बिटिया,महतारी,अजिया,बाबा, अउर आगेओ न जानै केत्ते नाती पोता कस्मीर से लइके क्न्याकुमारी तक कॉग्रेसी परिवार की विरासत सम्हारे हैं..
खैर या तौ पुरान बतकही राहए.. नई बात या है कि जंऊ नई बहुरिया हैं वऊ सब उदास होइ गई है..या पारिवारिक संस्कृति वाली खबर सुनिके..काहे से कि मनु मा स्वाचौ कुछु होइ जात है कुछु..अब बुढइ बुढ़वा का को दस दाँय चाह दे..
फिर बुढ़ापे मा चाह,बिस्कुट,दूध,मलाई, हद्द होइगै...अरे यो सब लरिकन खातिर होत है कि बुढ़वन खातिर...हाँ एक बात हमका नीक लागि..उई कहेन " स्त्री गरिमा बनी रहए का चही" लेकिन हिंया तो एत्ते दिमागी परे हैं कि गरिमै की रोटी खा रहे हैं जब तक ई गरिमा पर बहस करिके मामला गरमा न दें तब तक इनका चैनै नाइ आवत..अब द्याखौ भइया हम तौ तिखार दीन तुमहूं तनक तिखारौ..
भले ना हो पास मेरे शब्दों का खजाना, ना ही गा सकूँ मै प्रसंशा के गीत, सरलता मेरे साथ, स्मृति मेरी अकेली है, मेरी कलम मेरी सच्चाई बस यही मेरी सहेली है..
सोमवार, 22 सितंबर 2014
गरिमा
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