मत आना मुझे देखने,
जब अस्पताल में हो बसेरा मेरा,
मत सोंचना मेरे बारे में तुम,
कोई पीड़ा का पैमाना लेकर,
अपनी छुद्र मानसिकता से,
बाहर रखना मेरे परिवार को भी,
मैं कोई प्रदर्शन की वस्तु नहीं हूँ,
क्या देखोगे?क्यों देखोगे?
क्या देखोगे रुग्णावस्था मेरी?
या असहाय हो चुके मेरे बच्चों के चेहरे?
या फिर भविष्य से डरी हुई मजबूर स्त्री?
पीला मुखमण्डल सूखे होंठ,
तुमको तो ये सब ग्लैमरस लगते हैं,
सहयोग राशि देते हुए उसकी उँगली को छूना,
और अधिक सहायता के लिये पूँछना,
तुम्हारी आँखों की चमक,
तुम्हारी शैतानी मुस्कराहट,
बेहोश होने से पहले मैं देख चुका था,
क्या बहुत जरूरी है इस अमानवीय,
सामाजिक कर्तव्य को पूरा करना?
या कि, मेरी असहाय अवस्था को,
देखना अत्यंत आवश्यक है?
मैं जानता हूँ ये भी कि,
घृणा है तुम्हे इन जगहों से,
सहज नही हो पाते हो तुम,
नाक पर रूमाल बाँध कर वार्ड में तुम्हारा आना,
अपने जूतों में असंख्य हानिकारक,
जीवाणुओं को साथ लेकर,
फिर हितैषी कैसे हो सकते हो मेरे,
मात्र तुम्हारे देखने भर से क्या,
कोई चमत्कार हो जायेगा?
मैं स्वस्थ हो कर तुमसे हाँथ मिलाऊँगा?
मेरी समस्त पीड़ा और संताप हर लोगे तुम,
काश़ ऐसा कर पाते तुम.....
भले ना हो पास मेरे शब्दों का खजाना, ना ही गा सकूँ मै प्रसंशा के गीत, सरलता मेरे साथ, स्मृति मेरी अकेली है, मेरी कलम मेरी सच्चाई बस यही मेरी सहेली है..
रविवार, 10 अगस्त 2014
हितैषी..
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए अग्रिम धन्यवाद....
आपके द्वारा की गई,प्रशंसा या आलोचना मुझे और कुछ अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करती है,इस लिए आपके द्वारा की गई प्रशंसा को मै सम्मान देता हूँ,
और आपके द्वारा की गई आलोचनाओं को शिरोधार्य करते हुए, मै मस्तिष्क में संजोता हूँ.....