किंतु किसी भी कहानी को आखिर बिना प्रमाण के कैसे सच मान लिया जाय.?
तमाम महिलाओं की संवेदना को इस दुर्दांत घटना ने झंझोड़ा होगा..
गलतियाँ इंसानों से ही होती हैं मै मानता हूँ कि, तलवार दंपत्ति ने अपनी बच्ची को नौकर के भरोसे छोड़ा और अपनी दुनियाँ में मस्त रहे..ये उनकी बहुत बड़ी गलती थी..किंतु आप स्वयं सोंचे कि क्या कोई माँ बाप अपने बच्चे का कत्ल सिर्फ इस बिना पर कर सकते हैं कि उनके संज्ञान में कुछ ऐसा आ गया था जो सामाजिक दृष्टिकोण से अनैतिक था?
जहाँ तक मैं समझता हूँ कि, हत्यारे का अभी तक पता ना चलना सरासर सी.बी.आई. की विफलता है...और अपनी विफलता ना स्वीकारते हुए...तलवार दंपत्ति को बली का बकरा बना दिया..कितनी भी बड़ी गलती हो...नौकर की हत्या और अपनी संतान की हत्या करने में बड़ा अंतर है..
यदि ऐसा भी मान लिया जाय कि लड़की के स्थान पर अगर लड़का होता और नौकर की जगह नौकरानी होती तो निश्चित ही नौकरानी को दोषीलमान लिया गया होता क्योंकि, हमारा सामाजिक तानाबाना औरत को केंन्द्र में रख कर बुना गया है..
आखिर दूसरी बार की जाँच में ऐसा क्या नवीन सूत्र सी.बी.आई. के हाँथ आ गया कि, तलवार दंपत्ति को दोषी करार दे दिया? मैं किसी का समर्थन नहीं करता और उस कानून पर भरोसा करता हूँ जो कहता है कि, चाहे हजार दोषी छूट जाँय लेकिन एक भी निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिये।
भले ना हो पास मेरे शब्दों का खजाना, ना ही गा सकूँ मै प्रसंशा के गीत, सरलता मेरे साथ, स्मृति मेरी अकेली है, मेरी कलम मेरी सच्चाई बस यही मेरी सहेली है..
सोमवार, 25 नवंबर 2013
निर्दोष-दोषी
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