शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

मलाला

तुम जीना और तुम्हे जीना भी चाहिये,
गर मिला है विष उसे पीना भी चाहिये,
थूंक दो समर्थन करने वालों के चेहरो पर,
विस्फोट करो समाज औ संस्कृति के पहरों पर,
हमदर्दी से सहलाते पीठ वाले हाँथो को,
लच्छेदार मीठी चिकनी चुपड़ी बातों को,
कर दो बेनकाब समाज के ओहदेदारों को,
दे दो अब जहर मानवता के गद्दारों को,
हम कोई बहस नही करेंगे तुम पर मलाला,
फिर से इंसानियत का मुँह हुआ है काला,
जियो बार बार जियो स्वाभिमान मरने मत,
इंसानों की बस्ती में खुद को डरने मत देना,
गवाही देता है इतिहास मानवता का,
होता असफल हर प्रयास दानवता का,
सदियों से नारी होती रही समर्पित,
अब तुम खुद को मत करना अर्पित,
सर उठा कर मारो गाल पर तमाचे,
यदि फिर कोई नारी की अस्मिता को बाँचे,
तुम्ही ने दिये थे बेशुमार अधिकार,
अपना मालिक बना दिया हो निर्विकार,
अभी और कितना सहोगी,
कब तक चरणों की दासी रहोगी,
छीन लो अपनी तेजस्विता को,
गढ़ो फिर से अपनी मधुमिता को,
अब चर्चा तुम पर ना हो कुछ ऐसा करो,
मारो पाखण्डियों को पर तुम ना मरो।

2 टिप्‍पणियां:

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