शब्द नही है प्यार है मेरा,शब्दों का संसार है मेरा,
अगणित बातें कहने को(कलम)ब्लॉग ही अब आधार है मेरा.
मान जाओ ना .
प्रत्येक्य व्यक्ति के जीवन में प्रेम और युद्ध का प्रचंड महत्त्व होता है..........मेरे साथ भी है ,
गृहस्थ जीवन में आनदं परमानंद के साथ कभी कभी परम दंड भी झेलना पड़ जाता है,
दंड स्वरूप रूठने और मनाने की प्रक्रिया से तो गुजारना ही होता है,
मै भी गुजरा , और अर्धांगिनी को मनाने के लिए कविता भी लिखनी पड़ी,किन्तु ये सत्य है
कविता आप के समक्ष प्रस्तुत है,
ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,
तुमको मै समझा था पत्थर पर हीरे जैसी धार हो तुम,
तुम बरखा का संगीत सनम,और पतझड़ की अमराई हो,
आकाश से ऊंची सोंच तेरी,और सागर की गहराई हो,
प्रबल भले हो शब्द मेरे पर गज़ल का सारा सार हो तुम,
ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,
तुम मधुर कंठीनी कोकिल हो,तेरा रूप सिंगार हिमाला है,
मद्सिक्त हँसी मदमस्त नयन जैसे वारुणी रस का प्याला हैं,
तुम नेह का नीर भरे उर में,ममतामई केवल प्यार हो तुम,
ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,
हो मधुर पलों की शैली तुम मेरा कणकण रोम तुम्हारा है,
खुद कंटक पथ पर सो कर के मेरी पुष्पित सेज संवारा है,
अनजान भले तुम बनी रहो पर जान मेरा संसार हो तुम,
ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,
तुम मरू में आशा किरण हुई और मदूमास का पावस हो,
बनी हो संबल एकल पथ पर और सारा बल साहस हो,
गुजर गए सब पतझड़ मेरे अब वसंत त्यौहार हो तुम,
ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,
अगणित बातें कहने को(कलम)ब्लॉग ही अब आधार है मेरा.
मान जाओ ना .
प्रत्येक्य व्यक्ति के जीवन में प्रेम और युद्ध का प्रचंड महत्त्व होता है..........मेरे साथ भी है ,
गृहस्थ जीवन में आनदं परमानंद के साथ कभी कभी परम दंड भी झेलना पड़ जाता है,
दंड स्वरूप रूठने और मनाने की प्रक्रिया से तो गुजारना ही होता है,
मै भी गुजरा , और अर्धांगिनी को मनाने के लिए कविता भी लिखनी पड़ी,किन्तु ये सत्य है
कविता आप के समक्ष प्रस्तुत है,
ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,
तुमको मै समझा था पत्थर पर हीरे जैसी धार हो तुम,
तुम बरखा का संगीत सनम,और पतझड़ की अमराई हो,
आकाश से ऊंची सोंच तेरी,और सागर की गहराई हो,
प्रबल भले हो शब्द मेरे पर गज़ल का सारा सार हो तुम,
ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,
तुम मधुर कंठीनी कोकिल हो,तेरा रूप सिंगार हिमाला है,
मद्सिक्त हँसी मदमस्त नयन जैसे वारुणी रस का प्याला हैं,
तुम नेह का नीर भरे उर में,ममतामई केवल प्यार हो तुम,
ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,
हो मधुर पलों की शैली तुम मेरा कणकण रोम तुम्हारा है,
खुद कंटक पथ पर सो कर के मेरी पुष्पित सेज संवारा है,
अनजान भले तुम बनी रहो पर जान मेरा संसार हो तुम,
ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,
तुम मरू में आशा किरण हुई और मदूमास का पावस हो,
बनी हो संबल एकल पथ पर और सारा बल साहस हो,
गुजर गए सब पतझड़ मेरे अब वसंत त्यौहार हो तुम,
ये पता लगा है मुझे अभी मेरे जीवन का उदगार हो तुम,
वाह... वाह...
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