स्वार्थी, विश्वासघाती, हर पल मिला करते है,आस्तीनों में सांप पला करते है,सीख लो बीन बजाना तुम भी, संपोले हर घर में घुसा करते है...
कल शाम मेरे पुराने मित्र मेरे घर पधारे,
जो आप जैसे महापुरुष का दर्शन हुआ,
शायद मेरे स्नेहिल शब्दों ने- मित्र के अंतर्मन को छुआ,
बोले- क्या बताऊँ जब से वो मायके गई है,
खाने की समस्या खडी हो गई है,
आज कल मित्रों के यहाँ खा रहे है,
ये बताइये- आज आप क्या बनवा रहे है,
हमने कहा- ईमानदारी की रोटी,
इंसानियत की बोटी,
मजबूरी का पुलाव,
वो बोले- बस करो हमको ये सब मत खिलाओ,
गर खिलाना ही है,तो रिश्वत की रोटी बनवाइए,
बेईमानी की आग में सिंकवाइये,
मै सब खा जाऊंगा,
खाने के बाद डकार भी नही लाउंगा,
मैंने कहा प्यारे- बड़े उच्च विचार है तुम्हारे,
यही हाल रहा तो एक दिन सारे देश को खा जाओगे,
भूंख के कारन अपनी जान पर खेल जाओगे,
मित्र बोले- ये क्या बक रहे हो,
बिलकुल दुश्मन लग रहे हो,
मैंने कहा- वर्तमान परिवेश में तो दुश्मन ही सच बोलता है,
दोस्त तो मित्रता की आड़ ले कर पीठ में छुरा भोंकता है.....
कल शाम मेरे पुराने मित्र मेरे घर पधारे,
जो आप जैसे महापुरुष का दर्शन हुआ,
शायद मेरे स्नेहिल शब्दों ने- मित्र के अंतर्मन को छुआ,
बोले- क्या बताऊँ जब से वो मायके गई है,
खाने की समस्या खडी हो गई है,
आज कल मित्रों के यहाँ खा रहे है,
ये बताइये- आज आप क्या बनवा रहे है,
हमने कहा- ईमानदारी की रोटी,
इंसानियत की बोटी,
मजबूरी का पुलाव,
वो बोले- बस करो हमको ये सब मत खिलाओ,
गर खिलाना ही है,तो रिश्वत की रोटी बनवाइए,
बेईमानी की आग में सिंकवाइये,
मै सब खा जाऊंगा,
खाने के बाद डकार भी नही लाउंगा,
मैंने कहा प्यारे- बड़े उच्च विचार है तुम्हारे,
यही हाल रहा तो एक दिन सारे देश को खा जाओगे,
भूंख के कारन अपनी जान पर खेल जाओगे,
मित्र बोले- ये क्या बक रहे हो,
बिलकुल दुश्मन लग रहे हो,
मैंने कहा- वर्तमान परिवेश में तो दुश्मन ही सच बोलता है,
दोस्त तो मित्रता की आड़ ले कर पीठ में छुरा भोंकता है.....
तो आज से हमें अपना दुश्मन ही समझें
जवाब देंहटाएंक्यूँ ? इस शब्द पर अपना दिमाग न खर्चें
मित्रता की आड़ में ,आभार मत मानिए
हम आलोचक हैं पुराने,बस इतना जानिए-आशीष
नही आशीष जी, मै तो आपको सदैव मित्र नही छोटा भाई ही मानता रहूँगा, धन्यवाद दे कर आभार भी व्यक्त नही करूँगा, अब तो ठीक है?
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