कानपुर का आलम देखो बरस रही है मस्ती,
सभी दिवाने हुए खड़े है चाहे जो हो हस्ती,
रंगरलियों की बात करें क्या हवा हुई रंगीन,
हुल्लड़ धूम तमाशा हो चाहे आग लगी हो बस्ती।
मनु होय त कम्पू घूमि जाओ,
भीड़ भड़क्का रेलम पेला,
मोटर टम्पू खड़खड़ ठेला,
चाट पकउड़ी सेब औ केला,
चम्प चमेली केतकी बेला,
भगवत भूमि का चूमि जाओ,
मनु होय त कम्पू घूमि जाओ,
खुरपी फरुहा काँटा कीला,
लाल गुलाबी नीला पीला,
भंग तरंगं हैं छैल छबीला,
खड़खड़ गढ्ढा अड्डी टीला,
ठग्गू के लड्डू चिउरा चीला,
अब होरी के रंग मा झूमि जाओ,
मनु होय त कम्पू घूमि जाओ,
आला माला कान कै बाला,
स्थित प्रयागनरायन शिवाला,
हटिया कै खटिया बक्सा ताला,
नये गंज के मोटे लाला,
अखबारन मा अमर उजाला,
देखि बुनाई हैण्डलूमि जाओ,
मनु होय त कम्पू घूमि जाओ।
रचनाकार-राजेन्द्र अवस्थी....
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