रोज सब बखिया उधेड़ें देश और आवाम की,
अपराध का अड्डा है संसद गरिमा है बस नाम की,
चुप रहो कुछ कह न देना चुन के आये है सभी,
उसने चुना है इनको जो रोटी ना चुन पाया कभी,
क्या फरक पड़ता है इनको सिन्नी हो परसाद हो,
इनको है खाने से मतलब मुल्क ये बरबाद हो,
कानून की आँखों पे पट्टी है बंधी इस देश में,
पिंजरे में घुस बैठी है सीबीआई तोता वेष में,
कटोरा अपना मत छुपा सरकार की नज़रों में है,
देश अलबत्ता भयानक रूप से खतरों में है,
ना जरूरत है चढ़ाने की किसी को शीश के,
जब भी चाहेंगे उतारेंगे वो सर दस बीस के।
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