ले चल सजन उस गावं में
जहाँ सत्य की खुशबू आती हो,
कोकिल पंचम स्वर मे गाती हो,
अल्हणता मदमाती हो,
जहाँ दादी गीत सुनाती हो,
कली कली मुस्काती हो,
जहाँ सत्य की खुशबू आती हो,
कोकिल पंचम स्वर मे गाती हो,
अल्हणता मदमाती हो,
जहाँ दादी गीत सुनाती हो,
कली कली मुस्काती हो,
जहाँ माखन दूध मलाई हो,
अम्बुआ की अमराई हो,
अम्बुआ की अमराई हो,
बैठें नीम की ठण्डी छाँव में,
ले चल सजन उस गाँव में,
दिलों मे राग पनपते हो,
सपने नयनों में पकते हो,
जहाँ मिट्टी वाले कुल्हण हों,
चौपाल मे जिसकी हुल्लण हो,
जहाँ गउव्वें धूल उड़ाती हों,
जहाँ बुलबुल चोंच लड़ाती हो,
जहाँ शान लगी हो दाँव में,
ले चल सजन उस गाँव में,
जहाँ बातों की फुलझड़िया हों ,
जहाँ दाल मुंगौड़े बड़ियाँ हों,
इच्छाएँ भी छोटी हों
मक्के की सोंधी रोटी हो,
जहाँ साग हरी सरसों का हो,
सामान ना सौ बरसों का हो,
पायल पहना कर पाँव में
ले चल सजन उस गाँव में,
जहाँ चूल्हा चक्की आंटा हो,
जहाँ चिमटा चौकी पाटा हो,
जहाँ मस्जिद संग शिवाला हो,
अजान भजन स्वर माला हो,
बिखरी स्वछंद हवाएं हों,
माँ,पिता की संग दुवाएं हों,
पीड़ा सब जलें अलाव में,
ले चल सजन उस गाँव में।
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