बोरे मे जो हड्डियाँ भरी हुई हैं,
उनमे से कई को मैने पंहचान लिया,
मेरा कपाल दो टुकड़ों में निकला,
सच और झूठ को परिभाषित करते हुए
सिक्के के दो पहलुओं को दिखाते हुए,
अंन्धकार और प्रकाश को ले कर,
बाल रूखे मटमैले कुछ सफेद,
कुछ काले उलझे चक्रवात जैसे,
ह्रदय की हड्डी का पिंजर पूरा समूचा,
प्रेम और वात्सल्य को कैद किये हुए,
संसार जैसा बोरा ढ़ेर सारी हड्डियों से भरा,
भुजा अस्थियाँ कुछ सड़ी गली सी हैं,
दाहिनें हाँथ की तो उँगलियाँ ही है लापता,
उल्टे हाँथ का सब कुछ सीधा सा था,
कमर झुकी है या शायद टूटी हुई है,
दुनिया के दोहरे चरित्र का शिकार,
नैतिक अनैतिक मर्यादा रिवाज़,
के सड़े से कुछ पन्ने बाँकी बचे है अभी,
किन्तु पढ़े नही जा सकते,
तकदीर की तरह,
मिट्टी का भुरभुरापन हड्डियो ने सोंख लिया है,
कलम अस्तित्व बचाने में कामयाब रही,
जिससे लिखी जा सके हड्डियों की दास्ताँ
वाह.....बहुत ही खुबसूरत है पोस्ट।
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